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दीवाने से कभी हंस रहे हैं कभी रो रहे हैं

पोस्टमॉर्टम
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कोई रुला रहा है तो कोई खुशी के गीत गा रहा है. अचानक सी आई इस लहर ने हर किसी की आंखें चकाचौंध कर रखी हैं तो कोई आंसू के मारे बेचारा देख नहीं पा रहा है. कारण? कारण तो है और बहुत खास कारण है! बस कुछ ही दिनों में दुनिया रोशनी में इतनी डूब जाएगी कि रात भी दिन बन जाएगा. हर किसी के रोने और हंसने का कारण यही है. अब समझ ये नहीं आ रहा कि ये खुशी या डर के मारे रो रहे हैं या दिमागी तौर पर इस खबर ने उन्हें दिवालिया बना दिया है.


भाई हमारे यहां संतों की बड़ी पूछ है. संत की भी वेश-भूषा हमेशा अलग होती है. कभी ये संत बाबा बनकर आते हैं, कभी बापू तो कभी महाराज बनकर आ जाते हैं. आते क्या हैं, बस लोगों को आशीर्वादित कर जाते हैं. भाई कोई कुछ भी करे हमें क्या..लेकिन इन्हें है क्योंकि ये संत हैं. कभी ये अपनी बूटियों से लोगों के रोग हरते हैं और बदले में जीवनभर उनका लहू मांगते हैं, कभी ये प्रसाद देकर ऐसी मुक्ति देते हैं कि जीवन-मरण के मोह से ही मुक्त हो कोई दुबारा दुनिया में पैर न रखना चाहे, तो कभी स्वप्न दर्शन से जनकल्याण की रोशनी का रास्ता बताते हैं. पर इतनी अच्छी बातें हो रही हैं तो रोना किस बात का?


भई रोना इस बात का है कि हर तरफ बस रोशनी ही रोशनी फैल रही है. इस रोशनी में लोगों की आंखें चुंधिया गई हैं और कोई कुछ भी देख पाने में सक्षम नहीं है. लोग इसी रोशनी में अंधों की सी हालत में गिर रहे हैं, दबकर मर रहे हैं. पर इतनी रोशनी आई कहां से?


दरअसल एक रोशनी हर साल आती है और लोग इसके लिए पहले ही तैयार थे कि मिल-जुलकर रोशनी का गीत गाएंगे…दिए जलाएंगे..दो चार को पटाखों में भी जलाएंगे और फिर मिल-जुलकर मिठाइयां खाएंगे. समझ गए न! दिवाली की ही बत कर रहे हैं जो बस आने ही वाला है लेकिन इसके आने से पहले ही इस बार इसने इतने पटाखे फोड़े हैं कि कई लोग इसकी चमक से अंधे हो गए हैं, कई इसमें जलकर उठने की हालत में नहीं हैं, कई बेचारे सोच रहे हैं कि काश! यह दिवाली आई ही नहीं होती. दिवाली आई है और प्याज की रुलाई साथ लाई है. दरअसल प्याज हर किसी की रसोई में सबसे महत्वपूर्ण किरदार निभाता है लेकिन बेचारे को फिर भी अंधेरी टोकरी में छोड़ देते हैं. सबसे ज्यादा शायद आलू-प्याज ही बेचने वाला सब्जी वाला तक इसे भाव नहीं देता. औने-पौने दामों में बेच देता है. यहां तक कि दिवाली पर भी बेचारा किसी अंधी टोकरी में ही पड़ा रहता है…बदबूदार गलियां भले चाइनीज रंग-बिरंगी लड़ियों से सजी रहें लेकिन प्याज की टोकरी को रोशन करने की जहमत कोई नहीं उठाता. तो इस बार प्याज बुरा मान गया. कहा चलो कोई नहीं…तुम घमंडी इंसान मुझे न चमकाओ, मैं खुद चमक जाऊंगी. और वह चमक गई. आज 100 रुपए किलो बड़ी शान से अमीरों की ठाठ बना फिर रहा है. लोग इसकी रोशनी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे…बस दीवाने हुए जा रहे हैं…स्तब्ध से सुध-बुध खो बैठे हैं.


पर संतों की मेहरबानियां हम पर हमेशा होती हैं. जब-जब भारतभूमि पर कोई रोया है उसे हंसा-हंसाकर रुलाने कोई संत जरूर आया है…तो इस बार भी एक संत महाराज जी उन्नाव में प्रकट हो गए. स्वप्नद्रष्टा इस महाराज जी ने ‘लोहे को लोहा काटता है’ का उपाय अपनाने को कहा. इसलिए प्याज की रोशनी में जलकर मरने से बचने के लिए उन्होंने रोशनी अपनाने को कहा. पर प्याज की रोशनी बहुत तेज थी इसके टक्कर रोशनी के प्रवाह के लिए उन्होंने धरती मां का शरण लेने को कहा…कहा कि उन्नाव भूमि के गर्भ में रोशनी का खजाना है तो इसकी शरण में जाओ. फिर? फिर क्या…सरकार और सेवकों ने महाराज की आज्ञा का पालन किया और धरती के गर्भ में जाने के लिए गड्ढे बना रहे हैं. रोशनी अब तक मिली तो नहीं है…पर खोज जारी है. प्याज को शायद इसका अंदाजा हो गया था तो उसने अपनी चमक और बढ़ा दी है. लोग त्राहि माम कर रहे हैं. धरती के गर्भ से संतजी महाराज का स्वप्न आशीर्वाद भी बाहर नहीं आ रहा. लोग अब निराश हो चले हैं…पसीना बहाकर जलकर मरने से अच्छा वे प्याज की रोशनी की गर्मी से मर जाना ही अच्छा मानने लगे हैं. लेकिन यह भी डर है कि कहीं धरती के अंदर से रोशनी निकली भी अगर तो प्याज की गर्मी को निष्क्रिय करने के बाद इसका तेज भी आम लोगों को न जला दे. संत महाराज का आशीर्वाद कहीं झूठा न साबित हो. लोग हताश हो रहे हैं…दीवाने से कभी हंस रहे हैं..कभी रो रहे हैं..

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