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आजकल हमें कुछ लिखने के लिए मुद्दों को ढूंढ़ने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं होती. ऐसा लगता है मानों मुद्दा हमें ढूंढ़ता-ढूंढ़ता हमारे ही पास आ जाता है. अब देखिए ना उन्नाव का खजाना आजकल एक बड़ी चर्चा या कह लीजिए बहस का विषय बना हुआ है कि क्या कभी 1857 की क्रांति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे उन्नाव स्थित डौडिया खेड़ा दुर्ग में वाकई कोई बड़ा खजाना छिपा हुआ है? अगर आपको उन्नाव की इन हलचलों कें बारे में सब पता है तो ठीक है लेकिन अगर आप नहीं जानते किसी खजाने के जिक्र के बारे में तो हम आपको नहीं बताने वाले कि एक बाबा ने सपना देखा कि वहां खजाना है और हमारे पुरातत्व वैज्ञानिक पहुंच गए वहां खुदाई करने.
हंसिए मत, यही सच है कि हम भले ही कितना सुन लें, कितना कह लें कि सपनों की दुनिया से बाहर आओ लेकिन सच यही है कि हाइ-लेवल तक सपनों को बड़ा महत्व दिया जाता है. अभी पिछले दिनों आपने सुना होगा एक आदमी के सपने में दुर्गा मां आई और उसने उस आदमी को अपनी संतान को मारने का हुक्म दिया. अब भई देवि मां का आदेश था टाला कैसे जाता, तो मार दिया उसने अपनी बेटी को. अब यहां देखो एक बाबा ने कहा उसने अपने सपने में उस दुर्ग के खजाने को देखा है.
वैसे सोचिए जरा अगर उन्नाव का खजाना निकल गया तो ऐसे बाबाओं पर विश्वास कितना अटल हो जाएगा. सपने में देखा बाढ़ आई तो सारे प्रबंध कर लिए जाएंगे, किसी ने सपने में देखा कि ऐसे बाबा ही सपने में भुकंप, बाढ़, कोई आपदा देख लें तो सारे इंतजाम पहले ही कर लिए जाएंगे.
लेकिन….लेकिन एक बात तो कहना हम भूल ही गए अगर ऐसा हो गया तो उन लोगों की नौकरी का क्या जिन्हें रखा ही पूर्व जानकारी देने के लिए गय है. अरे भई कॉस्ट कटिंग का जमाना है बाबा के फ्री के सपनों से ही काम चल जाए तो उनकी तो छुट्टी पक्की है ना…!!
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