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बिजली संकट की चुनौती

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बिजली संकट हमारे देश के किसी भी शहर या गाव के लिए कोई नई बात नहीं है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा, पर है हर जगह। ठीक इसी तरह बिजली की घोषित और अघोषित दोनों तरह की कटौती भी हर जगह आम बात है। इधर हिमाचल प्रदेश में बिजली के उत्पादन में कमी आने के कारण उत्तरी ग्रिड को बिजली आपूर्ति घट गई है और इसके चलते उत्तर भारत के कई राज्यों में बिजली का नया संकट शुरू हो गया है। इसके चलते बिजली संकट से जूझने वालों में कुल नौ प्रदेश शामिल हैं- केंद्र शासित चंडीगढ़, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और खुद हिमाचल प्रदेश। हिमाचल प्रदेश में बिजली संकट दूसरे प्रदेशों की तुलना में आमतौर पर बहुत मामूली होता है, लेकिन इन दिनों हिमाचल भी दूसरे प्रांतों की ही तरह परेशान है। फिलहाल बिजली उत्पादन में कमी की वजह नदियों में जल के साथ आई गाद बताई जा रही है। लेकिन सामान्य तौर पर भी आवश्यकता के अनुरूप बिजली की आपूर्ति नहीं हो पाती है। सवाल यह है कि इसकी वजह क्या है?

यह स्थितिया तब हैं जबकि जिम्मेदार लोग पूरे देश में बिजली की व्यवस्था सुधारने के लिए लगातार चिंताएं व्यक्त करते रहते हैं। स्थानीय स्तर पर देखें तो अक्सर इस संदर्भ में योजनाएं भी बनती रहती हैं और उन पर काम भी चलता रहता है लेकिन सुधार कहीं दिखाई नहीं देता है। यह सोचा जाना चाहिए कि आखिर इसकी वजह क्या है। हालाकि इस प्रश्न पर भी काफी हद तक विचार किया जा चुका है। बिजली व्यवस्था के विशेषज्ञों की राय कई बार आ चुकी है और इस मामले में कुछ खास मसलों पर कमोबेश सभी विशेषज्ञ एकमत भी हैं। कारण लगभग सभी जाने हुए हैं और उनके निदान के लिए क्या किए जाने

की जरूरत है, यह भी मालूम है। फंड की कमी कई

और मामलों की तरह इसमें भी आड़े आ रही है, लेकिन यह इतनी बड़ी कमी भी नहीं है कि इसका कोई उपाय ही न किया जा सके। ऐसे कई मसले रहे हैं जिनमें फंड की कमी को चरणबद्ध तरीके से पूरा किया गया है। इसके लिए भी ऐसा किया जा सकता है। पूरे देश में एक साथ ये कमिया दूर नहीं की जा सकती हैं, लेकिन धीरे-धीरे इन्हें ठीक किया जा सकता है। यह व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है?

जहा तक कारणों की बात है, सामान्य तौर पर इसकी दो वजहें बताई जाती हैं- एक तो तकनीकी और दूसरी वाणिज्यिक। तकनीकी कमिया दो तरह की हैं, एक तो पारेषण यानी ट्रासमिशन से संबंधित और दूसरी वितरण संबंधी है। कई जगह ढीले तारों और जर्जर ढाचे के कारण बिजली का ट्रासमिशन सही तरीके से नहीं किया जा पा रहा है। यह समस्या हर जगह है और इसके चलते भारी मात्रा में बिजली लीक हो जाती है। एक तो वैसे ही देश में खपत की तुलना में बिजली का उत्पादन कम हो रहा है, ऊपर से जो उत्पादन हो रहा है उसमें भी बड़ी मात्रा में बिजली पहले ही बर्बाद हो जा रही है। इसके बाद वितरण व्यवस्था की कमियों के कारण भी काफी बिजली नष्ट हो जाती है। इस तरह काफी मात्रा में बिजली तो हम ऐसे ही बर्बाद कर दे रहे हैं। अगर बिजली की इस बर्बादी को रोका जा सके तो पूरी तरह तो नहीं, लेकिन काफी हद तक इसकी कमी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इन तकनीकी कमियों को दूर करने की बात तो लगभग हर प्रदेश में बार-बार की जाती है, लेकिन इस दिशा में गंभीरता और ईमानदारी से प्रयास होते कहीं नहीं दिखाई देते हैं।

इन कमियों को दूर किया जा सके, इसके लिए विशेषज्ञों के कई शिष्टमंडल विभिन्न देशों के दौरे भी कर चुके हैं। पिछले दिनों हरियाणा के गुड़गाव और फरीदाबाद शहरों में बिजली व्यवस्था दुरुस्त करने संबंधी एक प्रोजेक्ट के लिए विश्व बैंक से कर्ज मंजूर हुआ। उस वक्त भी कुछ अधिकारियों को ब्राजील और चीन भेजे जाने की बात हुई थी। उन्हें ब्राजील और चीन की यात्रा पर इसीलिए भेजा जाना था कि इन दोनों देशों में बिजली की व्यवस्था भारत जैसी ही है लेकिन वहा लाइन लॉस भारत की तुलना में बहुत मामूली है। चीन में बिजली पर लोड भारत से भी बहुत अधिक है, फिर भी वहा व्यवस्था नहीं चरमराती है। लेकिन भारत में बिजली व्यवस्था कभी भी चरमरा जाती है। आखिर हम उन देशों की व्यवस्था से सीख क्यों नहीं लेते, जहा कम खर्च में अधिक बिजली उत्पादन किया जा रहा है और उत्पादन का पूरा सदुपयोग भी हो रहा है? अगर ईमानदारी से प्रयास किए जाएंगे तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि कम लागत में भी व्यवस्था को दुरुस्त करने के प्रभावी उपाय निकल आएंगे।

सच तो यह है कि हमारी व्यवस्था में ऊर्जा संकट को दूर करने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति ही नहीं है। वरना बिजली की बर्बादी के उन कारणों को नियंत्रित कर ही लिया जाता जिन पर खर्च कुछ नहीं होना है और बचत बड़ी होनी है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो स्ट्रीट लाइटें हैं, जो अधिकतर शहरों में गर्मी के दिनों में भी दिन के आठ बजे तक जलती रहती हैं। इन्हें समय से बुझा देने में कोई लागत नहीं आती है और बहुत श्रम भी नहीं करना पड़ता है। इसके बावजूद ऐसा लगता है कि बिजली व्यवस्था की पूरी मशीनरी में इस पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है। खुद प्रधानमंत्री ने कई बार राज्य सरकारों से यह अपील की कि प्रदेश की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए लोकलुभावन घोषणाएं न करें। लेकिन इसका असर काग्रेस शासित प्रदेशों पर भी नहीं हुआ है। कई प्रदेशों में कुछ खास वर्गो को मुफ्त बिजली देने की घोषणाएं की जाती रही हैं। इन स्थितियों के रहते बिजली व्यवस्था को सुधारना बहुत मुश्किल होगा।

आजादी के 63 साल बाद भी आज तक पूरे देश में ऊर्जा संकट एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ा है। अगर अपने संसाधनों को ध्यान में रखते हुए इससे निबटने के ईमानदार प्रयास किए गए होते तो अब तक यह कब का इतिहास बन चुका होता। लेकिन यथार्थ यह है कि

अभी लंबे समय तक इस संकट से मुक्ति के आसार

दिखाई नहीं दे रहे हैं। क्योंकि अपने संसाधनों के समुचित उपयोग पर भी गौर नहीं किया गया। ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोत हमारे पास उपलब्ध हैं, उन पर अभी भी कुछ खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है। न तो सौर ऊर्जा को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रभावी प्रयास किए जा रहे हैं और न ही पवन ऊर्जा और अन्य स्त्रोतों के उपयोग पर ही गंभीर कार्य किए जा रहे हैं। सौर ऊर्जा के उपकरण अगर लोग लेना चाहें तो भी ये उनकी पहुंच से दूर हैं। न तो इनके निर्माण की लागत घटाने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं और न ही लोगों तक इन्हें पहुंचाने के लिए ही। अब जरूरत इस बात की है कि बिजली व्यवस्था को सुधारने के साथ-साथ हम ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों पर भी ध्यान दें। क्योंकि भविष्य में ऊर्जा की हमारी आवश्यकता सिर्फ बढ़नी ही है।

Source: Jagran Nazariya News


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