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हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही दिल्ली-हाबड़ा रेलमार्ग पर एक बहुत बड़ा हादसा होते-होते बच गया। हालांकि रेलवे संपत्तिकी क्षति बड़े पैमाने पर हुई और जो अफरा-तफरी मची सो अलग। ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के अंतर्गत दादरी में हुई इस घटना के मूल में थी एक मोटरसाइकिल सवार की अधीरता। वह खुद तो अपनी दोनों टांगें गंवा ही बैठा, साथ में रेल इंजन में भी आग लग गई। बाइक की टंकी फटने से लगी इस आग के चलते ट्रेन करीब दो घंटे तक ट्रैक पर खड़ी रही। इस आग को काबू करने में फायर ब्रिगेड की पांच गाडि़यों को काफी देर तक मशक्कत करनी पड़ी। यह हादसा तब हुआ जबकि इस रेलवे क्रॉसिंग पर फाटक था और उस वक्त बंद भी था। इसके बावजूद हमारे देश के लोगों में धैर्य की इतनी कमी है कि वे कुछ मिनट तक इंतजार नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में जिन रेलवे क्रॉसिंगों पर फाटक हैं ही नहीं हैं, उनके बारे में क्या कहा जाए? इसे सिर्फ भाग्य का ही मामला कहा जाना चाहिए कि कोई बड़ा हादसा आए दिन नहीं होता। वरना रेल और सड़क के लिए जिम्मेदार व्यवस्था अपनी ओर से ऐसे हादसों को रोकने के लिए सही इंतजाम करने के लिए प्रतिबद्ध हो, ऐसा दिखाई नहीं देता है।
वैसे तो यह स्थिति पूरे देश में है, लेकिन इसकी मिसाल देखने के लिए सिर्फ एक राज्य के आंकड़ों का उदाहरण ही काफी होगा। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पंजाब में कुल मिलाकर आधी से अधिक रेलवे क्रासिंग मानवरहित हैं। इस हिसाब से देखें तो आधी से अधिक क्रासिंग पर रेलवे ने जान-माल की सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं किया है। ऐसा नहीं है कि हादसे न हुए हों। आए दिन ऐसे हादसे होते ही रहते हैं और ये हादसे केवल पंजाब में नहीं, पूरे देश में होते रहते हैं। अकेले पंजाब में ही पिछले पांच वर्षो में 50 हादसे हो चुके हैं और इनमें सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी हैं। इन दुर्घटनाओं के दौरान मरने वालों में स्कूली विद्यार्थी भी शामिल रहे हैं। इसके बावजूद रेलवे क्रॉसिंगों पर नए फाटक लगाने की दिशा में इधर के वर्षो में कोई गंभीर प्रयास किया गया हो, ऐसा कहीं दिखता नहीं है। यह अलग बात है कि आए दिन इन दुर्घटनाओं के चलते लोगों की जान जाती रहती है।
रेलवे के इस मसले पर पूरी तरह गंभीर न होने की एक वजह शायद यह भी है कि अक्सर ऐसी दुर्घटनाओं में आम लोगों या वाहनों का ही नुकसान होता है। लेकिन दादरी की हाल की घटना इस संदर्भ में आंख खोलने वाली है। इस घटना से यह जाहिर हो गया है कि हर बार ऐसे हादसे में वाहन और उस पर सवार लोगों को ही नुकसान हो, यह जरूरी नहीं है। ऐसा भी हो सकता है कि इसके चलते रेलवे को ही नुकसान उठाना पड़ जाए। सबसे भयावह बात यह है कि रेलवे के संदर्भ में यह बात केवल एक-दो लोगों तक सीमित नहीं होगी। ट्रेन में अक्सर हजारों लोग सफर कर रहे होते हैं। बाइक की टंकी फटने के चलते लगी आग अगर कहीं डिब्बों तक जा पहुंची होती तो यह सोचना भी हृदयविदारक है कि क्या होता। ईश्वर न करे कि कभी ऐसा कुछ हो, लेकिन दुर्घटनाएं कभी किसी को बता कर नहीं आती हैं।
दूसरी तरफ, यही स्थिति रेलवे ओवरब्रिजों की भी है। रेलवे लाइनों पर ओवरब्रिज के निर्माण का कार्य कई जगह लटका पड़ा है। पंजाब में देखें तो ओवर ब्रिज और अंडर ब्रिज के काम कई जगह लटके पड़े हैं। पिछले वर्षो में भी जिन ब्रिजों पर यहां काम चल रहा था, वह काफी देरी से पूरा हुआ। इस कार्य में रेलवे के साथ-साथ राज्य सरकार की भी भागीदारी होती है। हालांकि कुछ रेलवे पुलों का काम राज्य सरकारों की कोताही के कारण लटकता है, लेकिन पंजाब के मामले में ऐसा नहीं है। यहां राज्य सरकार के हिस्से में जिन किन्हीं भी पुलों के निर्माण की जिम्मेदारी आती है, वह कभी भी उनके निर्माण में कोई कोताही नहीं बरतती है। पंजाब में राज्य सरकार की कोशिश हमेशा यह रही है कि वह समय से अपना कार्य पूरा कर दे। दूसरी तरफ, रेलवे का काम अक्सर लटक जाता है। इसकी एक वजह यह जरूर हो सकती है कि रेलवे को बड़े पैमाने पर ऐसे कार्य कराने होते हैं। रेलवे का दायरा पूरा भारत है और उसमें ऐसे सैकड़ों प्रोजेक्ट हर साल चलते ही रहते हैं। इसलिए दो-चार जगहों पर काम में देर हो जाना स्वाभाविक है, लेकिन यह देर बार-बार होना कहीं न कहीं से लापरवाही की ओर भी इशारा करती है। गौर करने की बात है कि रेलवे फाटकों पर होने वाले हादसों के सबसे ज्यादा शिकार स्कूली बच्चे और ट्रैक्टर-ट्राली वाले होते हैं। पंजाब में ऐसी कई घटनाएं घट चुकी हैं। हालांकि कई बार पैदल चलने वाले लोग भी ऐसे हादसों के शिकार हो जाते हैं। वाहन जो भी हो, पर एक बात तय है कि रेलवे फाटकों पर होने वाले हादसों के शिकार अधिकतर वही लोग होते हैं जिनमें पांच-दस मिनट इंतजार कर पाने का धैर्य नहीं होता है और साथ ही यह अति आत्मविश्वास होता है कि उनकी रफ्तार ट्रेन से कहीं ज्यादा तेज है। ऐसे लोग अक्सर रेलवे फाटक के बंद रहते हुए उसके नीचे से किसी तरह निकल कर दौड़ते हुए लाइन पार करते देखे जा सकते हैं। कई बार तो लोग अपनी साइकिल या बाइक भी इसी तरह टेढ़ी-मेढ़ी करके पार कराकर ले जाते हैं। दादरी में भी ऐसा ही हुआ। इस हिसाब से देखा जाए तो रेलवे फाटक और ओवरब्रिज या अंडरपास बनवाने का भी कोई फायदा नहीं है। क्योंकि बुनियादी तौर पर अपनी नागरिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूकता के मामले में हमारे देश के लोग अभी भी बहुत पिछड़े हुए हैं।
सच तो यह है कि इन सबसे ज्यादा जरूरी लोगों में इस बात के लिए जागरूकता पैदा करना है कि वे इस तरह के काम न करें। रेलवे ट्रैक दौड़ कर पार करने के बजाय थोड़ी देर इंतजार कर लें। ट्रेन आते वक्त दौड़ कर लाइन पार करना जानलेवा हो सकता है। वह जानलेवा सिर्फ उनके ही लिए नहीं, बल्कि हजारों लोगों के लिए हो
सकता है। रेल या अन्य किसी विभाग ने लोगों में ऐसी जागरूकता लाने के लिए कभी कोई सघन जनसंपर्क अभियान चलाया हो, ऐसा याद नहीं आता है। होना तो यह चाहिए कि इसके लिए गांवों और शहरों में जाकर लोगों को जागरूक किया जाए कि वे अपनी नागरिक जिम्मेदारियों को समझें। सड़क हो या रेलमार्ग, कोई भी कदम उठाने से पहले उसके परिणाम के बारे में जरूर सोचें। यह जिम्मेदारी समाज के शिक्षित तबके की भी है कि वह जिन लोगों को समझा सकता है उन्हें इस बारे में समझाए। जब तक इस तरह के प्रयास नहीं किए जाएंगे, तब तक सिर्फ पुल बनाने और फाटक लगाने से समस्या का कोई प्रभावी समाधान होने वाला नहीं है।
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