Menu
blogid : 1669 postid : 757

बंद दरवाज़ों के किस्से!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
  • 119 Posts
  • 1769 Comments

बंद दरवाज़ों के भीतर
बंद दरवाज़ों के किस्सों को
मोबाईल की स्क्रीन पर देखकर
मज़े लेने वाले लोगों
क्या तुमने कभी सोचा है
की मानवता किस हद तक गिर गयी है
औरत की मर्यादा को अपने हाथों
बीच बाज़ार नंगा करते हुए
प्रेम में किये गए समर्पण को
हवस का नाम देते हो
ये तो आँखों का नज़रिया है
बंद कमरे में अपनी प्रेमिका के साथ
बिताये गए प्रेम के अद्भुत पल
मोबाईल की स्क्रीन पर आकर
वैश्याओं सा व्यव्हार करती हैं

कभी लोक सभा में,
कभी विधान सभा में
कभी कड़ी के भीतर
तो कभी खाकी के भीतर
अब तो शरीफों के आस्तीन का ज़हर
जिस्म के लालची सौदागरों का सच बनकर
पुरे समाज को डंसने के लिए तैयार है
कभी तुम्हें डर नहीं लगा
तुम्हारे जैसे कई और भी हैं यहाँ
जो कभी तुम्हारे बंद दरवाज़ों के किस्सों का
नग्न चित्रण कर तुम्हारे प्रेम के पलों को
वासना की नुमाइश बना कर पेश कर सकते हैं
सब वासनामय हो गया है इस कलयुग में
इसलिए समय रहते बंद दरवाज़ों के किस्सों को
दरवाज़ों के अन्दर समेटने की एक मुहीम चलानी होगी
जिसमे सब की भागीदारी हो
जिसमे वेहाशी दरिंदों पर
अबला महिला भारी हो

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh