मैं कवि नहीं हूँ!
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नगर नगर ढूँढा तुझे, कहाँ है, कमाल है
गाँव गाँव पुकारा, न मिला तू, हुआ मन बेहाल है
रात को सपनो में ही दिखाती अब तेरी तस्वीर है
बिछड़ कर तुझसे देख बदल गयी मेरी तकदीर है
बहुत सुनी लोगों की बेतुकी और कही अनकही बातें,
तुझसे मिलाने की आस में गुजारी कई सर्द रातें
सब है, दर्द है, दावा भी है, बस तेरा अकाल है
ज़िन्दगी लग रही अँधा कुआँ, हर पल जैसे गहरी चाल है
कैसे भूलों तुझ संग बिताये वो सतरंगी रैन रे
छोड़ कर मुझे कहाँ गया, तू, कहाँ मेरे चैन रे
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