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हम बेकार हो गए!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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दी ज़िन्दगी उनके हांथों में, वो मेरे जज्बातों के खरीददार हो गए
वो हो गए शहंशाह किस्मत के, मेरे सरकार, हम बेकार हो गए

हम पूछते हैं तुमसे कब तक ज़िल्लतें सहे हम
यूँ कायरों की तरह कब तक मिन्नतें करें हम

हमने दी जिन्हें पनाह, अपना जिगर जलाकर
वो चुका रहे हैं कीमत, हमें बेइज्जती का जेहर पिलाकर

कुछ सुझता नहीं अब, हम गम-ए-बीमार हो गए
तुम कोठियों में सोये, मेरे सरकार हम बेकार हो गए

सर को किया कलम और ताली बजा रहे हैं
हमको लानतों में जीना सीखा रहे हैं

तुमको जो दी हमने ताकत हम शर्मसार हो गए
तुम जी रहे हो खुशियाँ, मेरे सरकार, हम बेकार हो गए

मुंबई हो, या हो दिल्ली, डर-डर के जी रहे हैं
खाते हैं हम तो गाली, और दर्द पी रहे हैं

हैं वो जागते सरहदों पर, करते हैं हिफाज़त
है जो अमन यहाँ, है वो उनकी इनायत

देना था साथ जब ,तुम बेजार हो गए
तुमको दिया जो मुल्क, मेरे सरकार, हम दीवार हो गए

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