मैं कवि नहीं हूँ!
- 119 Posts
- 1769 Comments
मैं एक छोटी सी आशा हूँ,
हर इंसान के अन्दर मौजूद उसके अस्तित्व की परिभाषा हूँ.
कभी कोलाहल से विचलित होती हुई,
कभी भू के स्वार्थ टेल पीसती हुई,
फिर भी न रुकने पाए कभी,
मैं तुम्हारी वही जिज्ञासा हूँ.
मेरे ह्रदय को न तारे कोई,
मेरी धमनियों में विद्यमान भय को न मारे कोई.
इंसान स्वयं के व्यभिचार में इतना लिप्त हुआ,
कभी स्वप्न में भी मुझे न पुकारे कोई.
आकाश की ऊँचाइयों को छूने वाले,
खुद की आशा से भी तो कभी हाथ मिला ले.
नयन पथिक की राह में अभ थक रहे,
तुम्ही तो हो अपने, ये दुखड़ा अब हम किससे कहें.
Read Comments