मैं कवि नहीं हूँ!
- 119 Posts
- 1769 Comments
कभी काला था अछूत, एक कोने में था वो खड़ा
आज है संगी सफेदपोशों का, है हर शख्स के आस्तीन पर अड़ा
कभी बदकिस्मती का होता था ये पर्याय
आज सत्तासीनों की बढ़ा रहा है आय
काला अब बाजार है, कालाबाजारी का जोर है
काले चोरों के हाथों में आ गयी सत्ता की बागडोर है
गोरे थे चहरे उनके और चरित्र था काला
गए वो चले गए लगाकर हमारी किस्मत पर काला ताला
काली है रात, काला हो गया भोर है
अब तो चहुँऔर काले का काला शोर है
आओ सब मिलकर हाथ जोड़ काला चालीसा गायें
काला लाल है, काला है हरा, आओ कला समक्ष हम शीश नवाए
Read Comments