मैं कवि नहीं हूँ!
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आज पलंग पर लेटे-लेटे मन बड़ा विचलित हो रहा था. भविष्य की चिंताओं ने मेरे अन्दर एक अजीब सा डर पैदा कर दिया.
तभी, कहीं से मेरे दिल मैं ये ख्याल आया, वो सारे शब्द मैंने कोपी मैं लिख दिए.
वही शब्द आपके समक्ष उपस्थित कर रहा हूँ.
चल-चल रे समय,
मेरा समय है आया!
मेरा लहू उबला मार रहा,
पौरुषता बाहें पसार रहा,
कह रही भुजाएं,
तू योद्धा है,
फिर क्यूँ तू राह निहार रहा!
चल-चल रे समय,
मेरा समय है आया!
अब रुकना मेरे बस में कहाँ,
जीतूँगा में ये सारा जहाँ,
अम्बर को नीचे लाऊंगा,
पर्वत से जा टकराउंगा ,
चल कर काँटों की राहों पर,
बदल की मस्त घटाओं पर,
एक और पहल,
एक स्वप्न महल,
इन हाथों से में बनाऊंगा!
चल-चल रे समय,
मेरा समय है आया!
गर्दिश को पीछे छोड़ चूका,
दिल मेरा अबतक बहुत दुखा,
अब और नहीं घबराऊंगा,
अब और नहीं इतराउंगा,
एक और कदम,
खुशियाँ हरदम,
एक नयी सुबह में लाऊंगा!
चल-चल रे समय,
मेरा समय है आया!
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