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चीथड़ों के कफ़न!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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जिंदगी के गलियारों से,
झांकते हुए गम देखे हैं,
आंसुओं से सींची हुई ज़मीन ज्यादा,
खिलते हुए चमन कम देखे हैं,

मदहोश हवाओं कि मस्ती में213
कई आँखें नम देखे हैं,
घटाओं कि खूबसूरती के परे,
हुस्न पर ढाए सितम देखें हैं,

देखी भीड़ में तनहा जिंदगी,
और खाबों कों बिखरते हुए देखा हैं,
देखी खुदा कि झूठी बंदगी,
और साँसों कों बेवफा होते देखा,

सड़क पर आज भी,
वही मंज़र नज़र आता है,
भूख की तड़प देखकर,
हृदय आज भी आंसू बहाता है,

पर्वतों कि हुए हौसलों के पीछे,
टुकड़ों में बिखड़े इंसान देखे हैं,
जले हुए मशालों के पीछे,
कुचले हुए अरमान देखे हैं.

तबाह होना जिनकी किस्मत है,
ऐसे हजारों नयन देखे हैं,
आज भी हमने गरीबों कि लाश पर,
आंसुओं कि बारिश और चीथड़ों के कफ़न देखे हैं.

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