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दरभंगा में विश्वास यात्रा.

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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कल श्रीमान मुख्यमंत्री जी हमारे शहर दरभंगा में पधार रहे हैं. मुख्यमंत्री जी ने जनता से सीधे संपर्क साधने के लिए शिकायतें दर्ज करने की मांग की है. हमें ऐसा लगा की शिकायत दर्ज करने का सबसे अच्छा तरीका तो यही होगा की मैं उसे यहाँ दर्ज करूँ, ताकि पूरी जनता उस शिकायत पे गौर फरमा सके. सबसे पहले विश्वास यात्रा की चर्चा की जाए. आखिर विश्वास यात्रा की जरुरत क्यूँ? और अगर जरुरत है भी तो मुख्यमंत्री जी ५ वर्षों से कहाँ थे, चुनाव के नज़दीक आने पर ही विश्वास की यात्रा क्यूँ शुरू की? वैसे भी अगर आप विकास की बात करने वाले व्यक्ति हैं तो आपको स्वयं पर विश्वास तो होना ही चाहिए. फिर ये विश्वास यात्रा की जरुरत क्यूँ ? वैसे भी आप क्या जानना चाहते हैं? जनता को आप पर विश्वास है की नहीं या आपको आप पर विश्वास है की नहीं? या फिर आप ये विश्वास करना चाहते हैं की आगामी चुनाव में आप हैं की नहीं?
आप शहर मैं औचक निरिक्षण के लिए आ रहे हैं. आप पुल, रोड और नई बनी चीजों का निरिक्षण करेंगे. लेकिन इन चीजों में कितनी मिलावट हुई और किसने की ये निरिक्षण तो शायद ही हो. आपने स्कूलों मैं साइकिल, कपडे और भोजन बंटवाए हैं ताकि विद्यार्थी पढ़ सकें. लेकिन शिक्षक पढ़ाने लायक हैं या नहीं इसकी चिंता कौन करेगा या यूँ कहें की इसका निरिक्षण कौन करेगा? 32 लाख की आबादी वाले दरभंगा शहर से सिर्फ १११ शिकायतें ही दर्ज हुई हैं. ये अपने आप मैं जनता का अविश्वास दर्शाता है. शहर मैं ७ मई को मुख्यमंत्री आ रहे हैं और ये बात हर किसी को पता है. फिल्म की साड़ी शूटिंग पूरी हो चुकी है और सेंसर बोर्ड को तो वही नज़र आएगा जो फिल्म वाले दिखाना चाहेंगे. हर सरकारी कार्यालय में इन दिनों जोरशोर से काम हो रहा है. जहाँ कभी शर्मा जी और झा जी पान चबाते नजर आते थे आजकल टेबल से उठते भी नहीं. लेकिन एक प्रश्न ये है की अगर पुरे साल का काम १० दिन मैं निबटाया जाए तो काम की क्वालिटी के साथ अन्याय तो नहीं? सड़कें आज भी जर्जर हैं और ट्राफ्फिक का हाल तो पूछिये ही मत लहेरियासराय टावर पे घंटों गाड़ियों के होर्न हिप होप संगीत का मुज़यारा करती सुनाई देती हैं. कहीं बैलगाड़ी तीसरी कसम की याद दिलाता है तो कहीं गाड़ियों से निकलता हुआ धुआं इस बात का एहसास दिलाता है की जापान पर परमाणु बम के हमले मैं लोगों के क्या हालत रहे होंगे. प्रशाशन और पुलिस से तो आम आदमी नज़र बचा के ही चलता है. डर क्यूँ है इस बात की जांच पड़ताल भी तो मुख्यमंत्री के ही जिम्मे आता है?
मुझे ये समझ नहीं आता की पुलिस क्यूँ है? हमारी रक्षा के लिए या हमें डराने के लिए? अगर पुलिस महकमा को ये लगता है की आम आदमी के बिच उसकी छवि अछि नहीं तो इस सन्दर्भ मैं पुलिस विभाग ने क्या किया है? आम आदमी के दिल से भ्रम को दूर करने का प्रयास क्यूँ नहीं किया?
विकास तो इस बार बारिश मैं चरों और बहेगा. और तमाशा देखेगी आम जनता.
और अब विकास यात्रा की परिभाषा में अपने शब्दों में करता हूँ. वैसे हम सभी तो ये जानते हैं की आज के इस बाज़ार में जो दिखता है वही बिकता है. यहाँ भी वही हो रहा है. प्रजातंत्र है. जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सर्कार. बस थोडा सा बदलाव है. जनता के पैसों से, जनता को रिझाने के लिए, पार्टी का प्रचार. श्रीमान यही है विश्वास यात्रा का मुलभुत आधार.

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