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देवी सीता का स्वर्ण-आकर्षण(मेरे काव्य का पहला भाग)

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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हमारे गाँव में शास्त्रीजी नाम के एक महात्मा आया करते थे. अभी कुछ वर्षों पहले उनका निधन हो गया. रामायण पर उनकी पकड़ और उनके विचार बहुत प्रभावी थे. एक बार उन्होंने स्वर्ण और नारी के संबंधों की व्याख्या रामायण के माध्यम से की थी. आज सुबह-सुबह वो प्रवचन मेरे मस्तिष्क में घुमड़ आया. पड़ोस की शादी में स्वर्णाभूषणों की मात्र पर औरतें खफा थीं. बस इस घटना से मुझे प्रेरणा मिली की में आज शास्त्रीजी के करकमलों में स्वर्ण और नारी के संबंधों पर एक कविता प्रस्तुत करूँ. मेरी इस कविता का एक-एक शब्द शास्त्रीजी को समर्पित है. उस महँ आत्मा को मेरा कोटि नमन.

सीता ने राम से कहा:
हे प्रियवर दूर महल से,
प्रकृति का ये सौंदर्य,
मन को बहुत भाता है,
कु-कु करती कोयल,
अनुपम मादकता लिए समीर,
बचपन की याद दिलाता है.

अपने ह्रदय के शब्दों का,
सीता ने प्रस्तुत गान किया,
थाम प्रभु राम के हाथों को,
प्रेम का आह्वान किया,
सीता के नयनों में राम,
खोये थे भरमाये थे.
सहसा हिरन एक,
स्वर्ण हिरन मनोहारी,
दौड़ता कुलाचे भरता,
करता पवन की सवारी,
सीता के नयनों को भाया,
स्वर्ण और नारी आकर्षण,
की कथा अभी तक ज्ञात न थी,
पवन से बातें करता मारीच,
उसके स्वर्ण-आकर्षण ने,
सीता के मन को भरमाया.

हे प्रभु, हिरन ये देखो कितना मोहक है,
पवन से भी तेज़ दौड़ लगाता,
स्वर्ण रंग में लिपटा,
लग रहा नया आलोक है.

राम:
सीते तुम विश्राम करो,
मैं अभी हिरन को लाता हूँ,
कहकर राम चल दिए,
हिरन तो तब तक कहीं दूर चला,
बाण एक हिरन को जा लगा राम के धनुष का,
मूर्छित हो मनुष्य मुख से,
एक कराह निकली,
पहुंचे राम समीप हिरन के,
देख उसे हतप्रभ हुए,
ये तो शारीर है मनुष्य का.

उधर राम मारीच के पास थे यहाँ सीता का हरण करने रावण पहुंचा:
स्वर्ण-आकर्षण से अभिभूत,
भीक्षाटन पर आये रावण को,
दिग्भ्रमित हो न पहचान सकी,
रावण के छल,
निति को,
स्वर्ण सुंदरी न जान सकी.

आह! स्वर्ण-आकर्षण ने ये कैसी थी चल चली,
स्वर्ण हिरन की अभिलाषा में,
रावण के हो सम्मुख,
देने भीक्षा,
अयोध्या की सम्मान चली.

रावण ने अब चुरा लिया,
राम के स्वर्नाभुशन को,
ले उड़ा वो अनंत आकाश में,
प्रभु राम के प्रियतम को,
पहुंचा फिर वो स्वर्ण देश,
सीता को उपवन का ज्ञान दिया,
स्वर्ण के आकर्षण,
को जान सीता बहुत पछताई,
देख स्वयं को स्वर्ण पिंजर में,
रोई और बहुत भरमाई.

स्वर्ण के आकर्षण में,
अब कभी नहीं में आउंगी,
कह के मन को इतनी बात,
प्रभु राम का,
सीते ने ध्यान किया.

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