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मेरा पहला और आखरी प्यार मेरी माँ

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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मुझे प्यार है. मुझे आज भी याद है जब मैंने पहली बार अपनी प्रेमिका को अपनी आँखों से देखा. प्यार तो मुझे, उसे पहली बार देखने के ९ महीने पहले ही हुआ था. लेकिन अपने प्रेम का इज़हार मैंने पहली बार अपनी प्रेमिका के गोद मैं सर रख कर और उसकी आँखों मैं आँखें डाल कर किया. मुझे आज भी याद है इस धरातल पर मौजूद अब तक के सबसे खुबसूरत चेहरे का दीदार. आँखें जैसे प्रेम का पर्याय थीं, उसकी मुस्कराहट के सामने दुनिया की हर खुबसूरत चीज़ कम ही नज़र आती थी. उसकी हर छुअन प्रेम की चाशनी से सराबोर हो मेरे अन्दर के इंसान को प्रेम की परिभाषा समझा रही थी. मैं उसकी गोद मैं लेटा एकटक उसे ही देखे जा रहा था. जैसे वो सारा प्रेम वो सारा स्पर्श और वो सारी अनुभूति मैं आज ही पा जाना चाहता था. फिर उसने मुझे सीने से लिपटा लिया. आह, वो आनंद जो मैंने उस वक़्त महसूस किया वो मैं बयां नहीं कर सकता. मैं खिलखिला के हँसना चाहता था, जोर जोर से रो कर अपने प्रेम का इज़हार करना चाहता था और उसे ये बताना चाहता था की जो प्रेम उसने मुझे दिया है उसका कोई पर्याय नहीं. लेकिन प्रकृति के नियमों से बंधा मैं नवजात शिशु अपने भावनाओं को अपनी प्रेमिका को समझा नहीं सका. हाँ, मुझे अपनी माँ से प्यार है, तब से है जब मैं इस दुनिया मैं आया और पहली बार अपनी आँखें खोली.
मेरी माँ दुनिया की सबसे अछि माँ है. मेरे पुरे परिवार का भार अपने कंधे पे उठाये जीवन के हर परेशानियों से लडती हुई आज उसकी आँखें थक गयी हैं. अब वो युवती नहीं रही. उसकी आँखें अब कमजोर हो गयी हैं. उसके शरीर पे उम्र का राक्षस हावी हो गया है. मेरे ह्रदय में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. क्या में उस कल्पवृक्ष को खो दूंगा जो कभी मुझे अपने छाँव में लोड़ियाँ गा कर मुझे चैन की नींद सुलाता था, क्या वो उँगलियाँ अब हमेशा के लिए मुझसे छिन जायेंगी जिन्हें पकड़ कर मैंने ज़िन्दगी के हर कठिन रास्ते को आसानी से पार किया ? क्या वो ममता और निस्वार्थ प्रेम भरी आँखें हमेशा के लिए बंद हो जाएँगी? वो आलिंगन जिसने धरती पर कभी मेरा स्वागत किया था क्या उससे में हमेशा के लिए बिछड़ जाऊंगा? आह! ये वेदना मुझसे अब बर्दाश्त नहीं होती.
मेरी माँ ने ज़िन्दगी के हर मोड़ पर मेरा साथ दिया. कभी बुरे से लड़ने की ताकत दी तो कभी अच्छा करने पर होले होले मेरे बालों को सहला कर मेरा उत्साह बढाया. लोग आते रहे मेरी ज़िन्दगी में और अपना किरदार निभा कर चले गए लेकिन मेरी माँ ने कभी मुझे अपने से अलग नहीं होने दिया. ज़िन्दगी के हर मोड़ पर अपनी दुआ, ममता और प्रेम की दवा से मेरा साथ दिया. मुझे आज भी याद है जब मुझे क्रिकेट खेलते वक़्त चोट लगी थी.मैं जैसे ही घर पहुंचा, माँ ने मेरी चोट को देखते ही मुझे गले से लगा लिया. “ये क्या किया तुने. कहाँ लगाई चोट? तुझे अपनी ज़रा भी परवाह नहीं, तुझे इस बात की भी परवाह नहीं माँ पर क्या बीतेगी?” आँखों में आंसुओं का सैलाब लिए वो एक सांस में ही सारा कुछ कह गयी. मुझे ये याद नहीं की मेरा घाव कैसे ठीक हुआ. हाँ, मेरी माँ के प्रेम से बड़ी दवा तो शायद अभी तक नहीं बनी. इसलिए मैं ये यकीन के साथ कह सकता हूँ की मेरे माँ के ममतामयी स्पर्श से ही घाव भरा होगा.
माँ, ये शब्द ही एइसा है की हर इंसान चाहे वो छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब, ताकतवर हो या कमजोर, इस शब्द से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है. मैं भी जुड़ा हूँ और मेरा तो पहला आखरी प्रेम मेरी माँ है. हाँ मैं प्यार करता हूँ अपनी माँ से करता हूँ और उसदिन से करता हूँ जब मैंने अपनी आँखें खोली थी. आज वो वृक्ष जिसने कभी अपने छाँव तले मुझे जीवन के सूर्यताप से बचाया है, बुढा हो गया है लेकिन उस वृक्ष का एक बीज मेरे अन्दर मौजूद है जो हमेशा मुझे इस बात की प्रेरणा देता है की स्वयं को एक विशाल वृक्ष बनाओ इतना विशाल की न चाहते हुए भी इंसान जीवन के ताप से बचने के लिए तुम्हारे छाँव मैं चैन के दो पल गुजार सके. अपनी माँ की इस प्रेरणा का मैं जीवन पर्यंत अनुशरण करूँ शायद मात्रि दिवस पर इससे अच्छा उपहार मेरी माँ के लिए कुछ न होगा.

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