मैं कवि नहीं हूँ!
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मैं जलूँगा धुआं बन कर
घुल जाऊँगा हवा में
मेरे लबों पर एक बार भी
न नाम तेरा आएगा
बुझाऊंगा मैं प्यास कुआँ बन कर
मेरा सुरूर तुझपर छाएगा
समेंटुगा मैं दर्द वफ़ा बनकर
टीस दिल की दिल में ही दबाऊंगा
न कहूँगा उफ़ कितने भी सितम कर ले तू
न आएगी अश्कों की लड़ी मेरी आँखों में
छुऊंगा मैं तुझे दुआ बन कर
मेरी छुं से तू न बच पायेगा
जिऊंगा मैं ज़िन्दगी सजा बन कर
हर शख्स तरस मुझ पर खायेगा
दूंगा तुझे मैं सुकून फिर भी तेरा जहाँ बन कर
रहेगी तू हमेशा मेरी साँसों में
लडूंगा इस इश्क के लिए फ़ना होकर
मेरी मोहब्बत कभी सौ रंग दिखाएगी
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