मैं कवि नहीं हूँ!
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मैं हर ह्रदय का गीत हूँ, मैं भंवरों का संगीत हूँ,
मैं हूँ लहर समुद्र का, मैं ही तो मीरा की प्रीत हूँ.
कर्त्तव्य हूँ मैं पुत्र का, मैं शूरता का प्रतीक हूँ,
डरता नहीं जो मृत्यु से, मैं शूरवीर, निर्भीक हूँ.
मैं कर्ण का निःस्वार्थ त्याग हूँ, मैं ही तो सुरों का राग हूँ,
मैं वेदना हूँ विरह की, मैं ही तो सूर्य का आग हूँ.
मैं हिन्दू हूँ, मैं ही तो मुसलमान हूँ,
मैं धर्म हूँ, मैं जाती हूँ, मैं ही तो पुरषों का अभिमान हूँ.
मैं प्रेम हूँ, करुणा भी मैं, मैं ही तो स्त्रियों का सम्मान हूँ
तुझमें छिपा जो बरसों से , उस क्रांति का, मैं ही तो आह्वान हूँ.
कब तक यूँही परिचय मेरा, तेरी समझ न आएगा,
कब तक रहेगा बेखबर, कब तक यूँही पछतायेगा.
अब तो तू पहचान जा, अब तो तू ये मान जा,
कानों को तेरी झंक्झोरती, मैं तेरी ही तो आवाज़ हूँ.
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