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यह समय है!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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यह समय है, यह उचित समय है,
हाँ सर्वोचित समय है.
हमारे उठने का, उठकर चलने,
और दौड लगाने का, समय है.
भ्रम और निष्क्रियता त्यागकर,
हुंकार भरने का समय है.
यह लड़ाई,
अब भ्रष्टाचार कि लड़ाई,
से, आगे निकल गयी है.
यह लड़ाई अब,
देश बनाम सरकार कि लड़ाई है.
सत्ता पर आसीनों,
कों उनकी गद्दी का दंभ हो गया है.
यह लड़ाई है,
उस दंभ कों मिटाने के लिए.
यह लड़ाई है,
अपनी मर्यादा बचाने के लिए.
आम इंसान कि महत्ता,
सत्ता प्रतिष्ठानों तक समझाने के लिए.
नहीं रुकनी चाहिए ये वीरों कि सेना,
ना ही युवाओं के ये बढ़ाते कदम,
युवतियों कों लाज के घेरे से,
निकलकर अपनी प्रतिष्ठा कि लड़ाई,
लड़ने अपने घरों से बाहर आना पड़ेगा,
माताएं पुत्र-मोह कों त्यागेंगी,
फिर लहर उठेगी,
अन्तः-हृदय में,
फिर कृपाण चमकेगा,
वीरों के करों में ,
और फिर भारत,
नव-वातावरण में सांस लेगा.
नव-वातावरण,
भ्रष्टों से मुक्त, दुष्टों से दूर,
स्त्रियों के विकास कि पराकाष्ठा,
पुरुषों के गौरव के वर्तमान के साथ,
एकता और हर्ष का भारत लाएगा.

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