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युवा और कुछ जानवर.(लेख)

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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क्या हो गया है इस देश को? कहाँ जा रहे हैं हम उत्थान की तरफ या पतन की ओर? कर्तव्यों से विमुख होते भारत को देख कर मन क्यूँ न विचलित हो? क्या माताओं ने अपने ललनाओं को इस लिए खोया था की उन्हें ये दिन देखना पड़े. क्या हमने स्वतंत्रता इस लिए प्राप्त की थी की अपने स्वार्थ और अपने हवस की पूर्ति के लिए हम भारत की अस्मिता को दांव पर लगा दें? कभी अर्जुन और कर्ण जैसे महान योद्धाओं की धरती कही जानी वाली इस माँ का क्या दोष है इसमें? गांधी जी वस्त्रों को पहनकर हम क्या साबित करना चाहते हैं? उनके आदर्शों के साथ हो रहे दैनिक बलात्कार के विषय में सोचना क्या हमारा कर्त्तव्य नहीं? राम जन्मभूमि, बहुत ही विवादित स्थान, लाखों भारतियों का मरघट. एक ऐसा कब्रगाह, जहाँ अपने स्वार्थ के लिए मनुष्यों ने श्री राम के ऊपर ही कलंक मढ़ दिया.

बचपन से लेकर आजतक, इस अनबुझ पहेली का रहस्य समझ नहीं आया मुझे. गीता से लेकर कुरान तक, रामायण से लेकर बाईबल तक, हर ग्रन्थ, भाईचारे और प्रेम का सन्देश देता आया है. कृष्ण की गीता से क्या सीखा हमने? अपने मनगढ़ंत विचारों को नीरीह और नासमझ मनुष्यों पर थोप दें. तू हिन्दू है और तू मुस्लमान, मैं सिख हूँ और तू इसी, क्या यही पाठ पढाया श्री कृष्ण ने अर्जुन को? अगर उत्तर नहीं है तो फिर आप और मैं क्यूँ नफरत के बीज बो रहे हैं? क्या हक़ बनता है आपका की आप मासूमों को यूँ गुमराह कर खून की होली खेलते रहे?

१९४७ से लेकर अबतक हुए दंगों की जब जिम्मेदारी लेने की बात आती है तो आप बगलें झांकते नज़र आते हैं. आप कहते हैं आपका मंतव्य इंसानों को नुक्सान पहुँचाना कतई नहीं था. आप क्या साबित करना चाहते हैं की ये जितने भी दंगे हुए हैं, ये जो आये दिन आतंकवाद और नक्सलवाद की आग में पूरा हिंदुस्तान जल रहा है वो हम कर रहे हैं. हम, यानी आम आदमी, हमें तो दो वक़्त की रोटी के बारे सोचने से फुर्सत नहीं. सर पर एक छत हो, इस लालसा की पूर्ति के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, लालसा मन में ही रहती है और आँखें बंद हो जाती हैं.

विश्व हिन्दू परिषद्, मुस्लिम लीग, ईसाई सभा, क्या है ये सब? एक-दुसरे के ह्रदय में नफरत फ़ैलाने के अलावा आपने किया क्या है? नहीं चाहिए हमें मंदिर, मस्जिद में नमाज भी नहीं पढनी हमें, हमें बस दो पल चैन के नींद और दो रोटी दे दीजिये, हम इसी में खुश हैं. अगर आपको हमारी इतनी ही फिक्र है, निकाल फेंकिये उस डर को जो हमारे ह्रदय में है, वो डर जो हम घर से निकलते समय महसूस करते हैं. डर, जो हमें ट्रेन में सफ़र करते समय लगता है, डर जो सिनेमाहोल से लेकर बच्चों के स्कुल तक, हमारे साथ-साथ चलता है. कर सकते हैं ऐसा? अगर नहीं कर सकते तो ये झूठा आडम्बर छोडिये. छोड़ दीजिये हमें हमारे हाल पर. हमारे हितैषी मत बनिए. हम जी लेंगे, जब आपके हाथों अपनों की हत्या होते देख भी जी लिया तो आगे भी जी लेंगे.

आप कहते हैं आप अयोध्या में मस्जिद नहीं बनाने देंगे. आप कौन हैं? जनता (भारतीय) हम हैं और बातें आप करते हैं. जनता(भारतीय) की सहनशक्ति की परीक्षा मत लीजिये. अंग्रेजों से लेकर मुग़लों तक ने हमारे रौद्र रूप को देखा है. क्या आप इतिहास दोहराना चाहते हैं? क्या आप सुअनना चाहते हैं युवा भारत की आवाज़?

हम अखंड भारत के पुत्र, भारत की अखंडता के लिए अपनी जान भी गंवाने से नहीं डरते. हमने डरना नहीं सीखा है. हमने आह्वान कर दिया है, एक क्रान्ति का, उस क्रांति का जिसमें हमने भारत के लिए एक हसीन सपना देखा. एक सपना, जिसमें भारत विश्वगुरु का ताज पुनः पहन कर विश्व को, नव भारत-सब भारत का पाठ पढ़ा रहा है. अपने युवा कन्धों पर भारत को संस्कारों के रास्ते से सभयता के शीर्ष पर ले जाने का स्वाना देखा है, हम युवाओं ने. हम एक हैं, न हम हिन्दू हैं, न हम मुसलमान हैं, न हम सिख हैं और न ही ईसाई. न हममे कोई छोटा है न कोई बड़ा, न कोई अछूत है और न कोई ब्रह्मण. शिक्षा की महत्ता को पहचानने वाले, आदर्शों की शक्ति को मानने वाले, काम, क्रोध और मोह की लालसे विरक्त, हम नवभारत के नवांकुरित फुल हैं.

हमने क्रांति का बिगुल बजा दिया है. अब हम नहीं रुकेंगे. हर साथ के साथ, हमारे कदम हिंदुस्तान की उन्नति की तरफ बढ़ते रहेंगे. हम आतंकवाद से नहीं डरते. हजारों की संख्या में उपस्थित ये जानवर, करोड़ों की हमारी ताकत से नहीं जीत सकते. अब समय आ गया है, इन जानवरों और हैवानों को अपनी शक्ति दिखाने. आप नेताओं के लिए कुछ आखरी शब्द.

हमें रोटी दो, शान्ति दो, घर दो और प्यार दो. अगर आप ये सब नहीं दे सकते तो आप अपनी गद्दी छोड़ने को तैयार रहे. हमने कमर कस लिया है, घर से कीचड साफ़ करने की शुरुआत भी कर दी है. या तो आप गद्दी छोड़ दीजिये या हम छुडवा देंगे.

जय हिंद!

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