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भूचाल धरा पर आया है
और घना अँधेरा छाया है,
आहात है इंसान और खुदा,
आहत है देखो आज सुधा
आँखों में पानी बचा कहाँ,
ना हृदय रहा ग़मगीन यहाँ
असुरों कि फ़ौज ने फिर,
मानवता कों झुकाया है,
अभी नहीं तो कभी नहीं,
अब खडग का भान भरो
उठो हिमालय, उठो ए भारत
माँ का तुम सम्मान करो
कुछ कुत्तों कि इस भीड़ ने
इंसान कों बहुत सताया है,
घाव भारत के भरने कों
समय ने तुझे बुलाया है
पशुओं का देश बना भारत,
अपने सुस्वप्न से गिरा भारत,
है गृहयुद्ध छिड़ा भारत,
जनता निष्प्राण हुई भारत,
सत्ता अनजान हुई भारत ,
देशभक्त कि इस धरती पर
देखो बेईमान हुआ भारत,
एक गांधी के हुंकार पर
देश उमर कर आता था,
इस गांधी पर हुए वार पर,
भारत मंद-मंद मुस्काता है,
कब तक यूँही घरों में
अपनों कों मरता देखोगे,
कबतक अभिमान के साये में
देश कों जलता देखोगे,
कुछ करने कि अब बारी है,
हो गयी पूरी तयारी है,
तू बजा बिगुल और सजा भाल
अब तू बन जा महाकाल,
दुष्टों का अंत निकट आया,
है प्रजातंत्र बना माया,
रण छेड़ के अब है समय कहाँ,
रण छेड़, ना कोई कल है यहाँ,
रण छेड़ के हिंदुस्तान रोता है,
रण छेड़ के सत्ता सोता है ,
रण छेड़ कि जनता रोती है,
रण छेड कैद में मोती है,
रण छेड़, मिटाना भय का साया है
रण छेड़, आज अन्ना ने तुझे बुलाया है.
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