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रिश्ते!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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एक रिक्शे वाले ने अपने आप को इस सभ्य समाज में सर उठाने के काबिल बना लिया, तो ऐसी कौन सी आफत आ गयी. इस धरती पर हर इंसान को हक़ है अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने का. घिसट-घिसट कर अपनी जवानी बर्बाद करने वाले ने अगर बुढ़ापे में एक हसीन सपना देख लिया तो क्या गुनाह किया. आरती तुम समझ नहीं रही. ज़माना अब बदल गया है. लोग २१ वीं सदी में जी रहे हैं. अपनी आँखों पर परा चश्मा उतारो और दुनिया को मेरी नज़र से देखो.

“जो भी हो, कविता की शादी में रमेश से नहीं होने दूंगी. वो कहाँ सड़क का भिखारी और कहाँ हम, खानदानी ठाकुर. हमारी तो नाक ही कट जायेगी. नहीं मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी.”, जमीन पर पैर पटकते हुए, आरती किचेन में चली गयी.

मेरी पत्नी आरती को समझाना और बरसात के मौसम में बिना छतरी के घर से बाहर निकलना, एक जैसा है. दोनों सूरत में बौछार आप पर ही होता है. कहीं बादल गरज कर बरसते हैं तो कहीं बिना गरजे ही बरसात शुरू हो जाती है. हुआ यूँ की आज सुबह मंगनू रिक्शावाला हमारे यहाँ आया. आते ही मेरे चरण छुए और मुझसे आशीर्वाद ले मेरे चरणों के सामने ज़मीन पर बैठ गया. मैंने उसे उठाते हुए कहा, भाई मंगनू, तुम और मैं एक ही मिटटी के बने हैं. ऊपर बैठो, तुम्हारा ही घर है.
वैसे ये पहली बार नहीं हुआ है की मंगनू हमारे घर आया हो और श्रीमती जी के साथ हमारी तकरार हुई हो. ऐसा पहले भी कई बार हो चूका है. मंगनू जब भी आता है ऐसे ही जमीन पर बैठता है और मैं हर बार उसे सोफे पर बैठने को कहता हूँ. हर बार श्रीमती जी की झार कानों में परती है, बस दो ही लोग तो अवतरित हुए हैं इस धरती पर, एक आप और एक गांधी जी.
देखिये इन छोटे लोगों पर ज्यादा भरोसा करना ठीक नहीं. एक दिन घर में आ जायेंगे. ज्यादा सर पर मत बिठाइए इन्हें.
अच्छा-अच्छा, समझ गया मेरी बिल्लो. हर बार अपनी पत्नी को हंस कर मन लेता था मैं. लेकिन आज वो नहीं मानेगी. अभी कुछ देर पहले ही तो कहा था उसने.
“देखा न आपने, आखिर वो घर में घुस ही आया. अपनी अंकिता का हाथ मांगने आया था.”
“तो क्या हुआ, उसका बेटा पढ़ा लिखा है, इसी वर्ष यु पी एस सी की परीक्षा पास की है उसने. अपनी अंकिता ने कोई गलत लड़का नहीं चुना है.”
“आप सठिया तो नहीं गए, लोग क्या कहेंगे, ठाकुर घराने की बेटी की शादी रिक्शेवाले के घर हुई. मुझसे ये बदनामी बर्दाश्त नहीं होगी. अगर आपने कोई ऐसा वैसा फैसला लिया तो मैं जान दे दूंगी.”,
अभी इस समस्या का कुछ किया नहीं जा सकता था. थोड़ी देर टी.वी देखने के बाद खाने की मेज पर चुपचाप बैठ गया.
उस दिन मंगनू पहली बार रवि को लेकर आया था. उसकी उम्र ५ वर्ष थी तब. क्या भोली शकल थी उसकी. उस मासूम आँखों में तैरते सपनो को साफ़ देख पा रहा था मैं.
” क्या नाम है तुम्हारा? पढ़ते हो?”, उसकी तरफ देखते हुए मैंने पूछा.
“रवि नाम है इसका साहेब, बस इसी की पढाई के बारे में बात करने आया हूँ. साहेब हम इसको बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहता हूँ. आपकी मदद चाहिए”, रवि की जगह पर मंगनू ने जवाब दिया.
“अच्छा-अच्छा, ठीक है, बताओ कैसी मदद चाहिए तुम्हें.”, मैंने पूछा.
“साहेब, आप इसको अपने घर में रख लो. इसकी पढाई का खर्चा मैं दूंगा, बस आप छत देदो. मेरे साथ रहेगा तो शराबियों और जुआरियों से सांगत होगी.”, मंगनू बिलखते हुए बोला.
मंगनू की नाम आँखों को देखकर मेरा दिल पसीज गया. मैंने उसे आश्वासन देते हुए कहा, कल इसे भेज दो. कल से इसके रहने की व्यवस्था करवा देता हूँ.
तभी मेरी छोटी बहिन, भागकर मेरी गोद में आ गयी.
“भैया, ये कौन है? यहाँ क्या करने आये हैं?”, एक साथ कई प्रश्न कर दिए उसने.
“ये रवि है, और ये मंगनू है इसका बाप. मंगनू तुम्हारे चाचा हुए और रवि तुम्हारा दोस्त.”,
मेरा इतना कहना था की अंकिता मेरी गोद से निकल कर रवि के पास चली गयी. दोनों खेलने में व्यस्त हो गए. मैं खुश था अंकिता को खेलने के लिए एक दोस्त मिल गया था. मंगनू ने रोते हुए मेरे पैरों पर गिर परा.
“अरे मंगनू ये क्या कर रहे हो, रवि मेरे छोटे भाई की तरह है. पिताजी के देहांत के बाद, अंकिता का बाप मैं ही तो हूँ. रवि को भी बेटे की तरह रखूँगा.”, मंगनू को समझाते हुए मैंने कहा.
उस दिन के बाद रवि हमारे घर में रहने लगा. मेरी पत्नी को उसका रहना कभी पसंद नहीं था लेकिन मेरी जिद के कारण मान गयी. धीरे-धीरे मेरी पत्नी भी उससे घुलमिल गयी. रवि हमारे परिवार के साथ बड़ा होने लगा. अब रवि और अंकिता जवान हो चुके थे. दोनों में बहुत अछि दोस्ती थी. साथ कोलेज जाते, साथ वापस आते. एक दुसरे के साथ दिन-रात झगड़ना.

मैं अपने कमरे में लेटा, उपन्यास पढ़ रहा था. अंकिता कमरे में आई. मेरे पैरों के पास बैठ कर उसे दबाने लगी. मेरे पैर दबाना वो कभी भूलती नहीं थी. मेरे बार-बार मना करने पर भी वो नहीं मानी. मैंने अब थक कर उसे मना करना छोड़ दिया. आज कुछ जल्दी आ गयी थी वो. मैं उपन्यास में खोया था और अंकिता मेरे पैर दबा रही थी. अचानक मुझे अपने पैरों पर पानी की बूंदों की थंधक का एहसास हुआ. उपन्यास से नजरें हटा कर जब मैंने अंकिता तरफ देखा तो कुछ समझ नहीं पाया. एक पल के लिए तो मुझे कुछ नहीं सुझा. अंकिता को रोता देख शायद मैं अपना सुध को बैठा.
“अंकिता, बेटा, गंगा जमुना क्यूँ बहा रही हो? क्या हुआ मेरे बेटे को? भाभी ने कुछ कहा?”, मैंने कारण जानने का प्रयास करते हुए कहा.
“भैया, मैं क्या करूँ, मैं नहीं जानती ये कैसे हुआ, मैंने ऐसा क्यूँ किया, बस मुझसे ये गलती हो गयी. मुझे माफ़ कर दीजिये”, इतना कहते ही वो फफक कर रो पड़ी.
उसको रोता देख मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा. ऐसा क्या किया इसने की मुझसे माफ़ी मांगने की जरुरत पड़ी इसे.
“क्या हुआ, कुछ बताओगी. बस रोये जा रही हो. क्या हुआ, बताओ मुझे”, अपने पर काबू पाते हुए मैंने पूछा.
“भैया, मैं और रवि एक दुसरे को पसंद करने लगे हैं. हम से प्यार करने की भूल हो गयी. हमें माफ़ कर दो. रवि ने जिद कर राखी थी की मैं आपसे बात करूँ. यु पी एस सी के रिजल्ट तक रुकने को कहा था उसने. भैया, प्लीज मुझे रवि दे दो”, अपने आंसुओं को पोंछते हुए उसने कहा.
रवि, मेरा भी लाडला था. लेकिन मेरी पत्नी को समझाना मुश्किल था. वो तो इस बात को सुनते ही पूरा घर सर पर उठा लेती. मैंने अंकिता को समझाते हुए चुप रहने को कहा.
“समय आने दे, मैं तेरी शादी रवि से ही करवाऊंगा. अरे उसका बाप रिक्शावाला हुआ तो इसमें उसकी क्या गलती है. अरे इससे होनहार लड़का मैं थोड़े ही ढूंढ़ पाऊंगा. और मेरी तो पहली पसंद है रवि. मुझे को ऐतराज नहीं है. बस तेरी भाभी को मानना पड़ेगा. ये बात उसे अभी पता न चलने पाए.
“ठीक है भैया, मैं रवि से कह दूंगी”, कहते हुए वो मेरे गले से लग गयी.

अभी हफ्ता भी नहीं बीता था की मंगनू हमारे घर आया. मेरी पत्नी मेरे पास ही बैठी थी. मंगनू मेरे पैर छूकर वहीँ नीचे बैठ गया. पत्नी साथ थी और मैं अभी तकरार के मुड में नहीं था सो मैंने उसे ऊपर बैठने को नहीं कहा. मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही मंगनू ने रवि और अंकिता के रिश्ते की बात शुरू कर दी.
“शेखर बाबू, आपने आज फिर साबित कर दिया की आप इन्सान नहीं देवता हैं. रवि को अपने दामाद के रूप में अपनाकर आपने मुझे जीत लिया. मैं पूरी उम्र आपकी गुलामी करूँगा. जल्द ही रिश्ते की रस्म अदा करने आऊंगा.”, मेरे पैर छूते हुए वो जाने को मुड़ा.
मैं असमंजस की स्थिति में आरती की तरफ देखने लगा. मुझे घर में होने वाले भावी हंगामे की आहात उसकी आँखों मैं साफ़ दिखाई दे रही थी. एक बार उसकी आँखों को और एक बार मंगनू को जाता हुआ देख रहा था मैं. अजीब कशमकश में फंस गया था मैं.
“अब खाना भी खाओगे या यूँही गूंगे बहरे बन कर बैठे रहोगे”, मेरी पत्नी की आवाज ने मुझे मेरी सोच से निकाला.
“देखो जी, मैं साफ़ कह देती हूँ. इसबार अगर तुमने अपनी मनमानी की तो मैं कुछ कर जाउंगी”, इतना कहते हुए वो रो पड़ी.
मैं कुछ नहीं बोला. बिना खाना खाए मैं अपने कमरे में जाने को बाधा. रास्ते में अंकिता भींगी पलकों से मुझे निहारती मिली. मैंने एक बार उसकी तरफ देखा और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा. कमरे में पहुँच कर मैं पलंग पर लेट गया. क्या करूँ, क्या न करूँ इस कशमकश में कब नींद आ गयी पता नहीं चला.
अगली सुबह मेरी ज़िन्दगी के सारे सपनों को बिखेर गयी. क्या सोचा था और क्या हो गया. किसी तरह आरती को मना कर अंकिता की शादी रवि से करवाने का सपना देखा था मैंने. शादी में शहर के हर राईस को बुलाना चाहता था मैं. कितने अरमानों से पाला था मैंने उसे, कुछ दिन तो रुकना था उसे. शादी करने के लिए घर से भागना जरुरी तो नहीं था. हॉस्पिटल मैं बैठा यही सोच रहा था की अचानक डॉक्टर ने आकर ओ- ब्लड ग्रुप के तीन बोतल खून की तुरंत व्यवस्था करने को कहा. अंकिता के कदम ने आरती को अपनी नस काटने पर मजबूर कर दिया. अपनी जिन्दी और मौत से जूझती आरती आई सी यु में अपनी ज़िन्दगी की चाँद सांसें गिन रही थी. डॉक्टर ने कहा, अगर खून नहीं मिला तो आरती मर जायेगी.
हे भगवन, एक साथ इतनी मुसीबतें. तुझे मैं ही मिला था.
भागता हुआ मैं हॉस्पिटल से बाहर आकर लोगों को फोन करने लगा. मेरी जरुरत कर ब्लडग्रुप, किसी का नहीं था. अब कुछ ही मिनट थे ओपरेशन में, आरती का बचना मुश्किल लग रहा था मुझे. मैं निराश होकर हॉस्पिटल की सीढ़ियों पर बैठ गया. अचानक मुझे मेरे कंधे पर किसी के हाथ का एहसास हुआ. मैंने घूम कर देखा. रवि मेरे सामने खड़ा था, उसके साथ अंकिता भी थी. अंकिता की आँखों में पश्चाताप के आंसू थे.
“भैया, आपने ये कैसे सोच लिया की मैं आपकी मर्यादा तोरुंगा . मैंने प्रेम किया है अंकिता से, कोई गुनाह नहीं. मैं इसे डोली में ले जाऊँगा या ताउम्र कुंवारा रहूँगा ये मेरा प्राण है. अभी-अभी डॉक्टर ने मुझे बताया की भाभी को खून की जरुरत है. मेरा भी ब्लड ग्रुप ओ- है. चलिए जल्दी. ओपरेशन का समय हो गया है”, मुझे कंधे से पकड़ कर उठाते हुए उसने कहा.

हम दौड़ कर आई सी यु के पास पहुंचे. डॉक्टरों की टीम रवि को तुरंत अन्दर ले गयी. मैं और अंकिता बाहर बैठ कर इन्तेजार करने लगे. मैं खामोश था. मैंने अंकिता की तरफ देखा भी नहीं. बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे. क्या कमी रह गयी थी मेरे दुलार में. क्या इंसान अपने बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा इस लिए करता है की एक दिन वो उसके पीठ में खंजर उतार दे. रिश्तों की उम्र छोटी हो गयी है आज.
“भैया मुझे माफ़ कर दो. मैं बहक गयी थी. प्यार ने मेरी आँखों पर पर्दा दाल दिया था. मैं आपके अहेम को ठेस कैसे पहुंचा सकती हूँ. एक बार अपनी बेटी को माफ़ नहीं करोगे”, आँखों में आंसुओं की धार लिए अंकिता ने कहा.
भाई और बहिन का रिश्ता भी अजीब है. हर मुश्किल घडी में रेशम के कच्चे धागों की मजबूत कड़ी से जुदा यह रिश्ता इन्शानी जज्बातों का उदाहरण है. अंकिता के आंसुओं ने मेरे ह्रदय में धधक रहे गुस्से की आग को ठंढा कर दिया. उसे गले से लगा कर मैंने फुट-फुट कर रो पड़ा. आंसू अपने आप आ गए. बहुत रोका मैंने, लेकिन ये सैलाब शायद आज ही आना था.
“मुबारक हो शेखर जी, आपकी पत्नी अब ठीक है. इस लड़के ने समय पर आकर उनकी जान बचा ली. आप दोनों से मिल सकते हैं.”, डॉक्टर ने ओपरेशन थियेटर से बाहर आकर कहा.
मैं और अंकिता अन्दर दाखिल हुए. एक बेड पर आरती लेती थी और एकटक रवि की तरफ देखे जा रही थी. दूसरी तरफ रवि बेहोश लेटा पड़ा था. मैं आरती के पास जाकर बैठ गया. अंकिता मेरे पीछे खडी हो गयी.
देखो आरती, आज तुम्हें उसी रिक्शेवाले के बेटे ने बचाया. अब तो उसका लहू भी तुम्हारे अन्दर दौड़ रहा है. और वही अंकिता को भी वापस लाया. उसने हमारे मान को ठेस नहीं पहुँचाया बल्कि उसे बचाया है. आज रवि की जगह कोई और होता तो मैं तुम्हें और अंकिता दोनों को खो देता.
मेरे इतना कहते ही वो आंसुओं पर अपना संतुलन खो बैठी. उसकी आँखों ने पश्चाताप के आंसुओं से उसके ह्रदय के मेल को धो डाला.
“हमारी बेटी की शादी रवि से होगी, हाँ, रवि से ही होगी”, मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर उसने अपनी आँखें बंद करते हुए कहा.

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