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विचार!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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एक धारा फूटी है भारत के
गर्भ से,
सब मस्त है,
और व्यस्त हैं,
हिन्दुओं को, हिन्दू धर्म को
कोसने के लिए,
इस छद्म और मायावी दुनिया में,
मेरा तात्पर्य है,
हमारी आज की दुनिया से
आप इसे फेसबूक, ट्विटर
इंटरनेट की मायावी दुनिया
भी कह सकते हैं,
आपको जो मानना हो मानिये
देखो तो वहां कहीं कोने मे
दुबक के बैठा हुआ है
क्या करेगा बेचारा
कोई नाम भी नहीं ले सकता
नाम लिया तो
बस शामत है
अब तो बात यहाँ तक
आ पहुंची है की
पूजा, पाठ, इश्वर,स्तुति
मंत्र, श्लोक, ऋचाएं
सब ढकोसला की श्रेणी में
डाल दिए गए हैं
कुछ समर्थक भी हैं,
इंटेलेक्चुअल समर्थक
जो स्वयं को अलग साबित
करने के चक्कर में
राम, कृष्णा,
को मानव बनाने पर तुले हुए हैं,
हमारी गाथाएं, हमारा इतिहास
हमारे भगवान सब झूटे हैं
और कुछ कथित सेकुलरवादी
हमें ये समझाने में लगे हुए हैं
की हम उस सत्य को भूल जाएं
जो सनातन है
और ये मान लें ,
की महाभारत, रामायण, गीता
जैसे हमारे ग्रन्थ
कहानियों से ज्यादा कुछ नहीं है
कभी मैंने तो ये नहीं कहा की
तुम्हारे इश्वर नहीं हुए
अवतरित, उन्होंने कोई
चमत्कार नहीं किया
जब हम मानते हैं
तुम्हें भी, और तुम्हारे इश्वर को भी
और उसे मानने वालों का
सम्मान करते हैं
तो तुम भी हमारे भावनाओं का
सम्मान करो

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