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इस ब्लॉग को लिखते हुए मुझे थोड़ी झिझक हो रही है. वैसे तो मैं ये कहानी अपने शहर के बारे मैं लिख रहा हूँ, लेकिन मुझे लगता है की ये कहानी सिर्फ मेरे शहर की नहीं, पुरे हिंदुस्तान की है. पात्रों के नाम ज़रूर काल्पनिक हैं, लेकिन कहानी शत प्रतिशत सही है.
आप सभी अख़बार पढ़ते होंगे और आपने पढ़ा ही होगा की बिहार मैं १२वी की परीक्षा के परिणाम बहुत अच्छे रहे हैं. ९३.४६% छात्रों ने परीक्षा पास करने मैं सफलता पायी है. मैं भी बहुत खुश था, लेकिन मेरी ख़ुशी उस समय उड़नछू हो गयी जब मैंने शिक्षा की बिकवाली देखि. हम क्वालिटी शिक्षा की बात करते हैं, लेकिन जिस तरह से शिक्षा के दलाल, शिक्षा को सब्जी की तरह खरीद-बेच रहे हैं, मुझे कहीं से नहीं लगता की हम जो चाहते हैं उसे पाने के पथ पर, हमने एक कदम भी बढाया है.
अगर हम होनहार और परिश्रमी विद्यार्थियों की बात कर रहे हैं, तो वो तो हमेशा से अव्वल ही रहे हैं. कभी परिस्थिति और परेशानियों ने उनके हौसलों को पस्त नहीं किया. चाहे वो लेम्प-पोस्ट के नीचे पढ़ने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी हों, या मेरे पड़ोस के गाँव के एक रिक्शा चालक का लड़का, जिसने पिछले वर्ष ही U .P .S .C की परीक्षा उत्तीर्ण की है. क्यूंकि ये वो लोग हैं जो ये मानते हैं, “मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनों मैं जान होती है, पंख से नहीं होसलों से उड़ान होती है”.
हम बात कर रहे हैं विद्यार्थियों के उस तबके की जो परीक्षा तो पास कर जाते हैं, जिनके पास धन तो है, हाँ बुद्धि की कमी है थोड़ी इनके पास. शिक्षा के खरीद फरोख्त के धंधे मैं इन्हें ‘CLIENT ‘ कहा जाता है. CLIENT को चुनने या यूँ कहिये की CLIENT को पटाने का का काम ‘शातिर’ करते हैं. बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों मैं जिन लोगों की पैठ होती है, ‘माहिर’ कहलाते हैं. शिक्षण संस्थानों के उन माफियाओं का कोड नेम क्या है, इस से मैं अनभिज्ञ हूँ. मेरे सामने बस यही तीन लोग आये हैं अभी तक. इन शातिरों और माहिरों से मिलने का मौका मुझे तब मिला जब मैं अपने शहर के सबसे मशहूर मंदिर, श्यामा मई के दर्शन करने आज सुबह पहुंचा. हाथ-पैर धो कर मैंने पूजा अर्चना की. धुप बहुत तेज थी आज. सो मैंने सोचा क्यूँ न थोड़ी देर विश्राम करने के बाद ही घर को चला जाए. मैं मंदिर प्रांगन मैं पंखे के निचे सुस्ताने लगा. थोड़ी देर बाद मैं वहीँ लेट गया. आँखें मूंदे मैं अपने पिछले ब्लॉग, एक विवाह ऐसा भी, के बारे मैं सोचने लगा. अचानक, मैंने महसूस किया की कुछ लोग मंदिर प्रांगन में आये और मुझसे थोडा हट कर बैठ गए. आँखें बंद किये हुए, मैं यूँही लेटा रहा.
“कौन से कॉलेज मैं एडमिशन चाहिए आपके लड़के को”? इस वाक्य को सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए. मैं लेटे-लेटे ही उनकी बातें ध्यान से सुनने लगा.
“जी V I T “.अब मुझे लगा की शायद यहाँ कुछ ऐसा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए. मैंने अपनी आँखें खोल लीं और गौर से उनकी बात सुनने लगा.
तीन व्यक्ति थे वहां. एक सांवला सा २३-२४ वर्ष का लड़का, एक ३५-४० की उम्र का डरावनी सूरत का और तीसरा ५० वर्ष का एक सभ्य पुरुष लग रहा था.
“कौन सा सेंटर पसंद है आपको? क्यूंकि पैसे सेंटर के हिसाब से फिक्स हैं. जैसा सेंटर चाहिए वैसे पैसे लगेंगे.” सांवले लड़के ने ५० वर्षीय व्यक्ति से पूछा.
“जो सबसे अच्छा सेंटर हो वहां एडमिशन कराना है मुझे. पैसों की कोई बात नहीं एडमिशन होना चाहिए.” सभ्य से दिखने वाले व्यक्ति ने रौब झाड़ने के अंदाज मैं जवाब दिया.
“आप एडमिशन की चिंता न करें माहिर होते ही इसी लिए हैं की एडमिशन कहीं भी हो, अगर आप पैसे खर्च कर रहे हैं तो CLIENT का एडमिशन वहां हो जाए. हर संसथान में पहुँच है हमारी. और अगर पहुँच नहीं भी है तो हमारे धंधे में एक दुसरे की मदद करने का उसूल है. सब जानते हैं की आज अगर हम उनके पास एडमिशन के लिए आये हैं तो उन्हें भी कल हमारे पास आना पड़ेगा” शातिर ने उस व्यक्ति को समझाते हुए कहा.
“ठीक है. आप ये बता दीजिये की पैसे कितने लगेंगे और कहाँ और कैसे देना है?”
“वैसे तो हम V I T के मेन सेंटर के लिए ६ लाख लेते हैं, आप ५ ही दे दीजियेगा” माहिर ने जवाब दिया.”पैसों के लेन-देन के लिए हम आपको फ़ोन पर बता देंगे”. इतनी बातों के बाद वो लोग चले गए. मैंने काफी सोचा की क्या किया जाए? शिक्षा और पठन-पाठन का स्तर इतना गिर गया है इस बात का तनिक भी एहसास नहीं था मुझे. बाद में छान-बिन करने पर मुझे पता चला की माहिर किसी अच्छे प्रोद्योगिकी संसथान का छात्र है और एडमिशन की दलाली या शिक्षा की बिकवाली उसका साइड बिजनेस है.
अगर इस तरह से गलत रास्ते से, छात्र या उनके माता पिता अपने बच्चों का एडमिशन अच्छे संस्थानों में करते हैं तो उससे न सिर्फ इन छात्रों का भविष्य अधर में जाएगा, बल्कि उन सैकड़ो-हजारों छात्रों का भविष्य भी अधर में जाएगा जो कड़ी मेहनत करते हैं.
इस ब्लॉग को पढने वाले सारे पाठकों से मेरा आग्रह है की आप अगर ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हैं तो उसे सबके सामने लायें और उन्हें शिक्षा के साथ खिलवाड़ करने से रोकें. शिक्षा बिकाऊ नहीं है, इस बात का एहसास उन्हें करवाना हमारा मकसद होना चाहिए.
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