Menu
blogid : 1669 postid : 55

साड़ी पर सवाल और जवाब की जरुरत ही क्यूँ?

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
  • 119 Posts
  • 1769 Comments

कभी बुर्खे पर सवाल तो कभी साड़ी पर बवाल. आखिर हम जा कहाँ रहे हैं. विकास की ओर या अपने पथ से विमुख होकर हम इस प्रतिस्पर्धा मैं लगे हैं की कहीं स्त्रियाँ हमसे आगे तो नहीं जा रही है या किसी पुरुष से में पीछे तो छुट नहीं गयी. ज़रूरत किस बात की है? परस्पर एक दुसरे का हाथ थाम कर, एक दुसरे को सहारा देने की या इस बात पे सवाल या बवाल करने की स्त्रियाँ क्या पहनती हैं? मैंने अदिति जी का जवाब पढ़ा और पढ़ने के बाद मुझे लगा की अदिति जी के जवाब के समर्थन में एक पुरुष(नवयुवक) भी अपनी अभिव्यक्ति दे.
अगर समाज के ठेकेदारों और धर्म के देकेदारों को ये लगता है की वो हमें अपने ऊँगली पर घुमा सकते हैं तो मेरे इस लेख को पढ़ कर वो भी सकते में आ जायेंगे. वैसे उन्हें अगर ये बात सच भी लगती है तो वो भी इस लिए की वो अब तक समझ रहे हैं की भारतीय स्त्रियाँ अब भी मुग़लों और अंग्रेजों द्वारा दमन की गयी स्त्रियाँ ही हैं. लेकिन उन्हें इस बात का ज्ञात नहीं, की भारत में हमेशा स्त्रियों को अगर जननी और शक्ति का दर्जा दिया गया है, तो वो सिर्फ उनके अन्दर मौजूद उर्जा, शक्ति और हर मुश्किल को आसान कर देने की उनके अविश्वसनीय ख्समता के कारण.
चाहे आप याज्ञवल्क्य को पराजित करने वाली गार्गी की बात करें, स्वतंत्रता संग्राम में भगत सिंह के साथ मिल कर अंग्रेजों के दांत करने वाली दुर्गा भाभी की बात करें या फिर अंग्रेजों को भारतीय स्त्री के पराक्रम से वाकिफ कराने वाली, रानी लक्ष्मी बाई की बात करें. स्त्रियाँ हमेशा पुरुषों के अन्दर की शक्ति का प्रतिबिम्ब ही रही हैं हमारे देश में.
और किरण बेदी के इस देश में स्त्री को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं ये हमारी स्त्रियों को बखूबी पता है. जो स्त्री पुरे संसार को गलत रास्ते पर भटकने से बचाती है, वो कहीं गुमराह न हो जाये इस बात की चिंता धर्म और समाज के ठेकेदारों को बताने की जरुरत नहीं. ज़रूरत कपडे बदलने की नहीं है, ज़रूरत है अपना नजरिया बदलने की. स्त्री को अगर माँ की दृष्टि से देखेंगे तो माँ नज़र आएगी, बहिन की तरह देखें तो बहिन लगेगी और भोग की वास्तु समझे तो, नज़र भी वही आएगा.वैसे भी महात्मा गाँधी ने कहा है की “हर बीमारी की जड़ डॉक्टर हैं. अगर डॉक्टर नहीं होते तो मरीज को बहुत ज्यादा खाने के बाद, पेट की गड़बड़ी के लिए, कोई दवाई की गोली नहीं देता. अब चूँकि मरीज को पता होता है की उसकी गड़बड़ी ठीक करने के लिए गोली उपलब्ध है, वो फिर से बिना रोक टोक खता है और खूब खता है, हर बार खता है. फिर बीमार पड़ता है. अगर उसकी ये सोच बदल जाए की डॉक्टर उपलब्ध है, तो दुनिया ही बदल जाये.
आज ज़रूरत है सोच बदलने की. स्त्री हो या पुरुष दोनों को आपस में कंधे से कन्धा मिला कर विश्व को प्रेम और संघर्ष की परिभाषा समझाने की. हर मुश्किल में एक दुसरे का हाथ थाम कर उसे आसान बनाने का प्रयास करने की.
तो आईये और इस सहयोग में एक दुसरे का हाथ बताएं……………

आपका विश्वासी,
एक भारतीय पुरुष.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh