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आप भी काम करते हैं और मैं भी. आप भी थकते हैं और मैं भी. फर्क सिर्फ इतना है की आपके शहर मैं आपके दिमाग से काम का बोझ हटाने के लिए पार्क है, शोपिंग माल है, जू है, और न जाने क्या क्या है, लेकिन हमारे शहर में हर मर्ज़ की दवा के लिए भारत का सबसे लोकप्रिय पेय चाय, की दूकान पर उपलब्ध है. जहाँ आप अपने सारे ग़म चाय की चुस्की में डुबो कर आनंद लेते हुए भुला देते हैं. ऐसे ही एक चाय की दुकान पर मेरा आना जाना भी है आजकल. . वैसे तो इस चाय की दुकान का नाम ‘संगम टी स्टाल’ है, लेकिन ये दुकान ‘सोलिड भाई की दुकान’ के नाम से ज्यादा मशहूर है. यहाँ हर तरह के लोग आते हैं, वो लोग जो पीते हैं और पिलाते हैं. क्या करें, यहाँ ढंग का कोई बियर बार भी तो नहीं. या फिर वो लोग जो सरकारी दफ्तरों मैं पुरे दिन फायलों को पलटते हुए अपना दिन बिताते हैं. और कुछ लोग मेरे जैसे भी आते हैं जिन्हें और कोई काम नहीं सूझता बस किसी का भला हो जाए इस बात की चिंता सताती रहती है. मुझे याद नहीं की इस दुकान का नाम किसी ने इस वजह से लिया हो की ‘मैंने अपने जीवन के हर मोड़ पर बस इसे ही अपने साथ खरा पाया. जब भी मैं उदास था, यहाँ आया, आते ही सोलिड भाई के मुस्कुराते हुए चेहरे को मेरा स्वागत करता हुआ पाया. बिना कहे चाय का ग्लास अपनी तरफ बढ़ता हुआ देख जब मैंने आँखें ऊपर की तो सोलिड भाई ने चाय का स्वाद पूछ कर मुझे ये याद दिलाया की दुनिया चाय की तरह है, अगर एक बार में पीने की कोशिश करोगे तो मुंह जल जाएगा, और अगर चुस्की ले के जिओ तो इसकी मिठास तुम्हारे मन को मीठा बनाएगा.’
इतना ही नहीं, जब आप खुश होते हो तो फिर क्या बात, सुनिए उनके चुटीले लतीफे. और आनंद उठाइए हकाई की मिठास का, धीरे धीरे.
एक बार मैंने सोलिड भाई से पूछ ही लिया की, भाई आप तो पढ़े लिखे हैं फिर आपने चाय की दुकान ही क्यूँ खोली? सोलिड भाई ने अपने पुराने अंदाज़ मैं कहा, अरे निखिल जी, मुझे चाय पीना बहुत पसंद है, तो मैंने सोचा क्यूँ न चाय की दुकान ही खोल ली जाए? और वैसे भी मैं लोगों को खुद जैसी चाय पियूँगा वैसी ही चाय पिलाता हूँ, ये अब मेरा धरम भी हो गया है और इसे अगर आप चाहें, तो समाज सेवा भी कह सकते हैं. वाह, वाह ! उनके इस जवाब ने तो मेरा मुंह ही बंद कर दिया. कितनी सच्ची बात कही थी उन्होंने. जी बिलकुल इससे बड़ी समाजसेवा क्या होगी, मुंह जो हमेशा करवा बोलता है उसकी मिठास बरक़रार रखने में अगर आप लोगों की मदद कर रहे हैं, भगवन की पूजा भी कम पद जाए तराजू के दुसरे पल्ले पे.
अभी इसी इतवार को मेरी टीम; टीम से क्रिकेट टीम मत समझिये, हमारी टीम इस शहर के कुछ नौजवानों की टीम है जो अपने काम के अलावा प्रदेश के लोगों को अंग्रेजी और कंप्यूटर की बेसिक ट्रेनिंग देता है, पास के ही एक गाँव जाने वाले थे. जाने से पहले सोलिड भाई की आँखों ने हमारा हौसला दो गुना बढ़ा दिया. मैंने कई बार उनसे उनके नाम के इतिहास के बारे मैं पूछा, पर वो इस रहस्य को यह कर टालते रहे की ” मुझे क्या पता पिताजी से मिलिए”. एक बार सोलिड भाई एक व्यक्ति द्वारे दुसरे व्यक्ति को इस बात के लिए दोष देते हुए की “तुने मुझे पीना सिखाया”, का जवाब देते हुए जीवन का सार कह गए. “मैं यहाँ रोज दूका खोलता हूँ रोज बैठता हूँ, तुम्हारे जैसे पीने वालों और कई दिलदार पिलाने वालों से रोज मिलता हूँ. सोलिड भाई एक पेग, बस एक पेग. आपको मेरी कसम जैसे वाक्यों से मेरा रोज सामना होता है. तो मैंने कहाँ पी. अगर तुमने पी है तो ये तुम्हारी गलती है. अपना दोष दूसरों पर मत माधो. तुमने सुना नन्हीं. ” जो रहीम उत्तम प्रकृति, करिसकत कुसंग. चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग.”
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