Poetry
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मैं भूख से बिलखता कोई नवजात देखूँ,
या फ़िर झूठे वादों की कोई बिसात देखूँ?
धर्म के नाम पर जब पूरा देश जल रहा हो,
तो अब किस नज़र से मैं ऐसा विकास देखूँ?
हमारे लिए जो खुद को रोज मार रहा है,
कब तक किसान को ऐसा बदहाल देखूँ?
अपने झंडे में लपेट कर नफरत बाँट गए वो,
और कब तक ऐसे खूनी दंगे और बवाल देखूँ?
गरीबों को मिलने लगे हैं झूठे वादे फिर से,
कब तक युवाओं में रोजगार का अभाव देखूँ?
सत्ता के लालच में ये भारत देश जला देंगे,
आखि़र कब तक मैं ये जानलेवा चुनाव देखूँ?
निखिल प्रकाश राय
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
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