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एक समय वह भी था जब पुलिस की गाड़ी को देख कर बड़े-बड़े लोग भी नमस्ते करने को मजबूर थे,यथा सम्भव सम्मान देते थे, पुलिस का आदर करते थे यहां तक कि छोटे बच्चे तो पुलिस को देख कर घरों में छिप जाते थे, लोगों में इतनी दहशत रहती थी। पुलिस भी जनता की सेवा करते थे, उनकी रक्षा करते थे। इसी कारण से लोग पुलिसकर्मियों का सम्मान करते थे,उनकी इज्जत करते थे, पुलिस का लोगों के अंदर खौफ़ भी रहता था लेकिन तब के समय से और आज के समय के संदर्भ में अगर तुलना करें तो बहुत ज्यादा अंतर देखने को मिलता है क्योंकि आज पुलिस का वो रुतबा देखने को नहीं मिल रहा। आज के परिदृश्य के हिसाब से पुलिसकर्मियों की एक तनिक भी इज्जत नहीं रह गई है जहाँ भी देखो वही पर पुलिस पिटती जा रही है,लोग वर्दी तक को फाड़ दे रहे है, पिस्टल तक उठा ले जाते है, कहीं-कहीं तो पुलिस को अपने प्राण तक देने पड़ते है।
आज समाज में पुलिस को लेकर न जाने क्या दिक्कत हो गई है कि लोग पुलिस को देख कर भड़क जाते है और मारपीट करने पर उतारू हो जाते है, पहले से आज तक के पुलिस के बदलते आचरण से ही लोग इस प्रकार की घटना को अंजाम देते है। अब इसमें अगर देखा जाय तो इसके लिए पुलिस के लोग भी कम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि वह अपनी साख को गिराते चले जा रहे है जिसका मुख्य कारण भ्रष्टाचार है,इस भ्रष्टाचार के वजह से ही पुलिस और जनता के बीच की दूरी घटती जा रही है।
आज अगर पुलिस की साख गिर रही है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है यह पुलिस विभाग को ही तय करना होगा कि अगर कोई हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है तो क्यों कर रहा है, क्या के कारण है जिससे कि आम जन लोग पुलिस को देख भागने के बजाय आज उसके ऊपर डंडे और पत्थर बरसा रहे है और उनकी जान लेने में भी गुरेज नहीं कर रहे, यह पुलिस विभाग के लिए बहुत ही चिंता का विषय है और उच्च अधिकारियों को इस समस्या को मद्देनजर रखते हुए इसका हल भी खोजना चाहिए।
~नीरज कुमार पाठक नोयडा
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