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मानवीय समाज रूपी माला बनने में कई प्रकार की मोतियों का योगदान होता है। ये मोती हमारे ही अपने लोग होते है जो एक माला गूँथने मे सहायक होते है। चूँकि सामाजिक माला तैयार करने के लिए हमको एक तरह की मोती की आवश्यकता नहीं होती है,लेकिन इन विभिन्न मोतियों से बने माला को ही हम समाज मे तरह-तरह से परिभाषित करते है। चूंकि मानव रूपी मोतियों से एक जैसी माला बनाना सम्भव नही लगता,इसलिए ये समाज कई तरह के मोतियो से युक्त है। अब अगर यह सामाजिक माला बनाया गया है तो वाजिब सी बात है कि माला टूटेगी भी, और इस संसार मे जब हर चीज का अंत होना सुनिश्चित है तो फिर अहं किस बात पर लोग करते है। संसार मे अगर आदि है तो अंत भी है। जीवन है तो मृत्यु है। पुण्य है तो पाप है, रात है तो अंधेरा है फिर अगर दुनिया मे विकास है तो विनाश भी होगा,और जब विनाश होता है तभी विकास होता है, बिना विनाश के विकाश की संभावना भी नहीं रहती। लेकिन फिर भी मनुष्य लालच की माया में पड़कर सृष्टि के विपरीत भी जाकर कार्य को अंजाम दे देता है, लेकिन उसको यह पता नही कि मैं किसके लिए इतना बड़ा लालच का मुखौटा ओढ़ कर इस संसार मे लूट, भ्रष्टाचार आदि को अंजाम देते रहते है, इसलिए की मैं विलासिता पूर्ण जिंदगी जी सकूँ, और अपना नाम देश में रोशन कर सकूं, नाम रोशन करने की बात तो ठीक लगती है लेकिन तब जब वह ईमानदारी के रास्ते पर चल कर किया गया हो, न कि बेईमानी के रास्ते पर चल कर अर्जित किये गए अकूत सम्पत्ति से, अब सबसे बड़ा सवाल यही है जब यह शरीर ही नश्वर है तो फिर मनुष्य की लालच नहीं रुक रही।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोयडा
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