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मिड-डे मील का घटिया स्तर

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भारत में कोई भी महत्वाकांक्षी योजना को चलाने का उद्देश्य सिर्फ यह नहीं होता कि आम-जन मानस को सिर्फ राहत दिया जाय, इसमें यह भी होता है कि राहत के हिसाब से उसकी गुणवत्ता भी जरूरी होता है।इसलिए यह बहुत जरूरी है कि योजना कोई भी हो उसकी गुणवत्ता को जरूर बनाएं रखा जाय। इंही योजनायों में एक योजना का नाम है मिड-डे मील जो भारत सरकार की एक ऐसी योजना है जो हमेशा विवादों में ही घिरी रहती है वो भी अपनी गुणवत्ता के कारण, इसमें अब कोई भी राज्य हो हर जगह से इस योजना की शिकायतें प्राप्त होती ही रहती है,लेकिन फिर भी लाख कमियां निकलने के बाद भी कोई सरकार इसके प्रति न तो सजग होती है और न ही इस पर कोई कड़ा कदम उठा रही है, जबकि इस मिड-डे मील के खाने की गुणवत्ता वास्तव में घटिया स्तर की है जिसको सुधारने की जरूरत है या फिर इसको बन्द कर दिया जाय, इस योजना से फायदा कम, नुकसान ज़्यादा होता है।इसमें भी ज्यादातर जगह पर तो यह योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है जिसके कारण ही इसका घटिया स्तर देखने को मिलता है। आज के समय मे सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि सरकार की कोई भी योजना अगर लाई जाती है तो उस योजना में कोई खोट नही रहती , अगर खोट आती है तो उसके क्रियान्यवन में, क्योकि यह भ्रष्टाचार की चक्की में फस कर रह जाती है जिसके कारण ही मिड-डे मील में कभी सांप तो कभी छिपकली तो कभी कॉकरोच पाये जाते है, जिसके कारण किसी स्कूल में तो काफी संख्या में बच्चे बीमार हो जाते है और किसी -किसी मामले में तो बच्चों की जान भी चली जाती है , लेकिन इस योजना के गुणवत्ता को कोई भी सरकार सुधार नही कर पाई,जिसका खामियाजा निर्दोष बच्चे भुगत रहे है, लेकिन इस समस्या का हल कही से मिलने के आसार नही दिखते। इसलिए सरकार को चाहिए कि या तो मिड- डे मील के गुणवत्ता में सुधार किया जाय या फिर इसको बन्द कर दिया जाय, क्योकि उस योजना का क्या औचित्य जिससे आम जन को किसी भी प्रकार से लाभ न मिलता हो।। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोयडा

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