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शिक्षा का मंदिर कहा जाने वाला विद्यालय आज शिक्षा में कम ,गोलियों की तड़तड़ाहट के रूप में कुछ ज्यादा ही प्रसिद्धि पा रहा है, जिस प्रकार से स्कूल परिसर में ही छात्र हिंसक रूप लेते जा रहे है,यह चिंता का विषय बनता जा रहा है। छात्रों के इस व्यवहार से शिक्षा और शिक्षक दोनों पर अंगुली उठना स्वभाविक है,क्योंकि शिक्षा का ये मतलब कतई नही होता कि विद्यालय परिसर में ही किसी अध्यापक या अपने सहपाठी की जान ले ले,और इससे शिक्षा लेने का कोई फायदा भी प्रतीत नही होता। इन सब घटनाओं से शिक्षक की भी बदनामी होती है कि शिक्षक ने क्या शिक्षा दिया। इस प्रकार से कोई शिक्षक कितना भी अच्छा क्यो न हो उसके किये पर पानी फिर जाता है।आज हमारे समाज के लिए बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा है कि स्कूलों के अंदर कुछ बिगड़ैल किस्म के लड़के स्कूल और अध्यापक के साथ-साथ माता-पिता का भी नाम मिट्टी में मिला रहे है वे अपनी जिंदगी तो बर्बाद करते ही है दूसरे बच्चों की भी जिंदगी को अंधकारमय बना देते है जिसको जिंदगी जीने की लालसा के रहती है उसको भी मौत के घाट उतार देते है,अपराधी किस्म के छात्र बिल्कुल भी नही सोचते कि आगे हमारा क्या होगा? हमारा जीवन किस तरफ जायेगा?हम उज्ज्वल भविष्य से अंधकारपूर्ण जिंदगी के तरफ क्यों बढ़ रहे है। इन सब से परे वे घटना को अंजाम दे देते है और परिणाम से वेफिक्र रहते है।आज के समय में सबसे बड़ी समस्या यही है कि आज के लोगों ख़ासकर नवयुवकों में तो बिल्कुल ही सहनशीलता खत्म होती जा रही है वे अपने ऊपर कन्ट्रोल नही रख पाते और छोटी-छोटी कहासुनी को ही लोग अपने प्रतिष्ठा से जोड़कर देखना शुरू कर देते है जो आगे चलकर एक भयंकर रूप ले लेती है,और फिर परिवार के लोगों का अहं कमजोर पड़ने लगता है। इस प्रकार से अगर देखा जाय तो गुस्से पर कंट्रोल न होने के कारण व्यक्ति को काफी नुकसान उठाना पड़ता है और लोग उठाते भी है, लेकिन जब उनको पछतावा होता है तब तक काफी नुकसान उठा चुके होते है। आज छात्रों के हौसले इतने बुलंद है कि वे दिन- दहाड़े स्कूल परिसर में घुसकर अपने सहपाठी या फिर उस गुरु को निशाना बनाते है जो खुद उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए ज्ञान देता है।ऐसे बिगड़ैल बच्चों के संस्कार में अब दोष किसका माना जाय ,यह तो एक अहम् सवाल है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोएडा
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