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एनसीईआरटी के द्वारा पढ़ाये जा रहे पाठ्यक्रम को अगर सरकार आधे करने का फैसला कर रही है तो यह बच्चों के नजरिये से बहुत ही उपयुक्त कहा जा सकता है क्योंकि आज के समय में बच्चों की पीठ और दिमाग पर जिस प्रकार का बोझ डाला जा रहा है यह बच्चों के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों से ही कष्टप्रद है , इतना बोझ बच्चों को शारिरिक बृद्धि को भी प्रभावित करते है इसलिए सरकार को इस मामले पर गम्भीरता से सोचने की भी जरूरत है जिससे नौनिहालों की जिंदगी इन किताबों के बीच में ही दफन न हो जाये। सरकार ने फिलहाल 2019 से एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को आधा कर उसको लागू करने का विचार किया है। इस भागमभाग जिंदगी को रफ्तार देने के लिए और एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा रखने के लिए हर अभिभावक की सोच भी इस कदर भाग रही है कि वे अपने नन्हें से मुस्कान पर भी बिल्कुल तरस नहीं खाते और उनके भारी-भरकम बैग को बड़े आराम से पीठ पर लाद देते है और जिम्मेदारी से इतिश्री कर लेते है।आज के इस युग में हर अभिभावक कि सोच ऐसी हो गयी है कि वो सोचता है कि कहीं मेरा बेटा पीछे न रह जाये और इसी चक्कर में वह दबाव बनाता है और इसी दबाव के कारण बच्चें हाथ से निकल भी जा है जिसके कारण फिर अभिभावक भी उदास हो जाते है। अभिभावक को कभी भी बच्चे के ऊपर दबाव नही बनाना चाहिये। उनको खुद ही क्षेत्र का चयन करने दिया चाहिए न कि अपने मनके मुताबिक। अगर हम बच्चे के मुताबिक नही चले तो समस्या तो आएंगी। आज जिस प्रकार का किताबी बोझ बच्चों पर डाला जा रहा है यह उनके लिए लिए बहुत भारी पड़ रहा है इसी भारीपन के कारण बच्चे असफल होते है और कुछ तो इस असफलता को पचा नहीं पाते और जिंदगी को खत्म करना ही अपनी जिम्मेदारी समझ लेते है, जबकि समस्या का यह समाधान कहीं से भी सही नहीं है, इसलिए कभी भी बच्चे को शारीरिक और मानसिक पीड़ा न दें और उसको बिन दबाव अध्ययन करने दे जिससे कि वह निडर होकर अपने उज्ज्वल भविष्य की तरफ अग्रसर होता रहे। *****************************************नीरज कुमार पाठक आइसीएआइ नोएडा
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