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भारत के सभी राज्यों की अपेक्षा जम्मू-कश्मीर को जो सुविधा दी जाती है वह उसके विशेष राज्य का दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के कारण है। इस अनुच्छेद के कारण जस्वतंत्रता के बाद से लेकर आज तक जितनी भी सरकारें हुई वह सिर्फ सत्ता भोग करती रही लेकिन इस कानून को खत्म करने पर बिल्कुल भी नहीं सोचा और अब यही लापरवाही देश के लिए घातक बनती जा रही है क्योकिं सुप्रीमकोर्ट ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि अब इस अनुच्छेद को काफी समय हो गया है और अब इसमें कोई बदलाव संभव नहीं है
अनुच्छेद 370 की बाध्यता ने कश्मीर को भारत में रहते हुए भी अलग कर रखा है।एक देश रहते हुए भी दो झंडे लगना, कश्मीर के लोगो को दोहरी नागरिकता मिलना ,यहां तक कि किसी भी भारतीय को वहां पर जमीन न खरीद पाना यह सब एक देश के अंदर हो रहा है। कांग्रेस की सरकारों ने वोट की खातिर कुछ ऐसा कर दिया कि आज उस समस्या को लेकर पूरा देश परेशान है। कश्मीर की समस्या के लिए अगर देखा जाय तो केवल और केवल देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू खुद ज़िम्मेदार हैं नेहरू की अदूरदर्शिता का परिणाम ही है कि आज पूरा देश भुगतने पर मजबूर है।
अनुच्छेद 370 को जब लागू किया गया तो सभी लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया था पर पंडित नेहरू अपनी जिद पर अड़े रहे और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता और मज़बूरी का हवाला देकर इसे लागू कराने में सफल रहे। पंडित नेहरू की शेख अब्दुल्ला से दोस्ती कश्मीर और भारत दोनों के लिए घातक बनती जा रही है। काश! अगर नेहरू ने सरदार वल्लभभाई पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की बातों को मान लिया होता तो शायद आज कश्मीर समस्या नहीं होती और हम गर्व से कहते कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है लेकिन अनुच्छेद 370 राजनीति में फंस कर रह गया।
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