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राजनीति का क्षुद्र स्वरूप

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मनुष्य कितना भी नीचे गिर जाय परन्तु वह कभी भी कंकाल पर राजनीति नहीं करना चाहेगा परन्तु भारतीय राजनीति का स्तर इस कदर गिर गया है कि यहां के राजनेता मरे हुए कंकाल पर भी राजनीति कर रहे है। इराक में वर्ष 2014 में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने मोसुल में 40 भारतीय नागरिकों को अगवा कर उनकी हत्या कर दी थी तो उसी समय सब लोगों को किसी न किसी अनहोनी की आशंका हो गयी थी,  लेकिन पूर्णरूप से यह विश्वास नहीं था कि ऐसा कर सकते है। इन 40 नागरिकों में से किस्मत से एक भारतीय बच गया परन्तु 39 लोगों की किस्मत अच्छी नहीं थी जिसके कारण ये सभी मारे गए।               …आखिरकार जिस बात की पूरे देश को आशंका थी कि कहीं इन भारतीय नागरिकों के साथ कुछ गलत  न हो जाय,  अंत मे वही हुआ, जिस शब्द को कोई भी सुनना नहीं चाहता। इन दुर्दांत, क्रूर आतंकियों ने 39 भारतीयों को मारकर गड्ढे में ढक दिया, ऐसी घिनौनी वारदात कहीं से भी सही नहीं है। विश्व के अंदर अगर सबसे संवेदनहीन आतंकियों की बात करें तो उसमें आईएसआईएस की गिनती सबसे ऊपर होती है लेकिन उससे भी ज्यादा संवेदनहीन हमारे देश के राजनेता है जो इस 39 भारतीयों की मौत पर भी बेशर्मी की  राजनीति कर रहे है।     ……………आज इस मामले में सभी राजनीतयों का इतना  तो फर्ज बनता है कि वह कम से कम एक सुर से इस खूंखार आतंकवादी संगठन की निंदा करें और कंकाल पर राजनीति का त्याग करें । लेकिन दुख इस बात का है कि हमारे नेता खासकर विपक्ष निंदा करने के बजाय सरकार पर यह आरोप लगा रहे है कि पीड़ित परिवारों को अंधेरे में रखा गया लेकिन शायद इन राजनेतायो को ये नहीं पता कि अगर सरकार 4 साल पहले ये बता देती कि सभी भारतीय मारे गए तब आज उस पर भी राजनीति होती क्योकिं अगर गलती से कोई भारतीय जिंदा बच जाता तो फिर यही विपक्ष आरोप लगाता कि सरकार ने सही जानकारी नहीं दी और भारतीय जनता को अंधेरे में रखा। विपक्ष का मतलब ये कतई नहीं होता कि वह हर किसी मामले पर सिर्फ विरोध ही करें, विपक्ष को सरकार की नीतियों का विरोध करने का अधिकार तो है लेकिन ऐसे मुद्दों पर नहीं जो मानवीय संवेदना को तार-तार कर रहा हो। काश! हमारे राजनेता ऐसे मामलों पर एकजुट होकर कोई नया प्लान बनाते कि इस मामले पर क्या करना चाहिये बजाय एक-दूसरे आरोप-प्रत्यारोप लगाने के। इस प्रकार से अगर देखा जाय तो देश के राजनेतायो की राजनीति का सूचकांक बिल्कुल शून्यता पर पहुँच चुका है अब इससे ज्यादा घृणित राजनीति नहीं हो सकती।                                                                *****************************************नीरज कुमार पाठक   आईसीएआई    नोएडा

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