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आज के समय में कोई भी व्यक्ति जो सड़क पर चल रहा है उसको हम कदापि यह नहीं कह सकते कि वह सकुशल अपने घर पहुँच ही जायेगा, उसके ऊपर हमेशा आशंका बनी रहती है कि वह कब किसी हादसे का शिकार न हो जाये। यह शायद उसको या उसके घर वालों को भी नहीं पता रहता है। आज सड़क पर निकलने वालों के परिजन भी आशंकित रहते है कि कोई बुरी खबर न मिल जाये। हमेशा सड़क पर चलते समय यह डर बना रहता कि कहीं से कोई आकर टक्कर न मार जाये। आज सड़क के ऊपर चलना बहुत ही कठिन है। सड़क पर चलने वाला भी न तो किसी नियम का पालन करता है और न ही मानता है, लोग लाल बत्ती के बावजूद सड़क को पार करने की कोशिश करते है जिसके कारण दुर्घटना का होना तय हो जाता है दूसरा कारण अत्यधिक गति से वाहन को चलाना। तीसरा कारण शराब पीकर गाड़ी चलाना। इन सब कारणों से दुर्घटनाओं का प्रतिशत बढ़ता जाता है। सड़क दुर्घटनाओं के लिए प्रशासन भी कम जिम्मेदार नहीं है जो सड़को की गिरती गुणवत्ता को कायम रख पाने में विफल रहता है। सड़क पर बन रहे गढ्ढो को समय से भरा नहीं जाता जो दुर्घटना के कारण बन जाते है। आज की स्थिति ये है कि अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डाला जाय तो 2016-2017 में सड़क हादसों में हर घंटे में 16 लोगों की मृत्यु हो जाती है। नेशनल क्राइम के अनुसार भारत में 2014 में साढ़े चार लाख से ज्यादा दुर्घटनाएं हुईं जिनमें से 1,41,000 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। दुर्घटनाओं में मारे जाने वालों में दिल्ली सबसे ऊपर है जहां पिछले साल 7,191 दुर्घटनाएं हुई जिनमें से 1,332 लोगों की मृत्यु हो गयी बाक़ी के 6,826 लोग घायल हो गए, अब देश के सामने यह सबसे बड़ा सवाल है कि ये सड़क दुर्घटनाओं का दौर कब थमेगा और कब निर्दोष लोगों के मरने का सिलसिला रुकेगा। *****************************************नीरज कुमार पाठक भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान नोएडा
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