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आरक्षण में फंसता भारत

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आरक्षण की शुरुआत तो देश के अंदर स्वतंत्रता के बाद से ही कर दी गयी थी जब संविधान की रचना हुई थी। तभी से आज तक यह आरक्षण निर्बाध रूप से जारी है। उस समय आरक्षण का मक़सद सिर्फ़ इतना था कि लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके और वह परिवार स्वयं आत्मनिर्भर बन सके, लेकिन आरक्षण की बीमारी ऐसी सबको लग गयी है कि कोई भी काम करने को तैयार नहीं है। सबको शार्ट कट रास्ता चाहिए लम्बी दूरी पर कोई नहीं चलना चाहता, जिसका फायदा कुछ राज्य उठा भी चाह रहे है जिनको विशेषाधिकार प्राप्त है। इस आरक्षण का मतलब साफ है कि कम समय में जल्दी से आगे निकल जाए। तबसे आज तक आरक्षण की गाड़ी सरपट अपने पटरी पर दौड़ रही है जिसको राजनीतिक खेल के कारण रोकना भी खतरे से खाली नहीं है बहुत से राजनीतिक दल ऐसे है जिनको केवल हवा मिल जाय कि आरक्षण समाप्त हो रहा है तो वो ऐसी हवा उड़ा देंगे कि सरकार को पसीने आ जाएंगे। आज आरक्षण को लेकर राजनीति इतनी बुरी हो गयी है कि कोई भी इससे वंचित नही रहना चाहता, अब चाहे कोई धर्म, जाति, वर्ग से सम्बंध रखता हो या फिर कोई राज्य क्यों न हो सबको आरक्षण चाहिए, बिन आरक्षण के कोई भी सफलता नहीं पाना चाहता। यही कारण है कि देश के कोने-कोने से समय-समय पर आरक्षण के लिए आवाजें उठती रहती है और इस आरक्षण की आग से देश जलता रहता है। आज सभी लोगों को आरक्षण चाहिए , इसमें देश के कई राज्य है जो अपने को विशेषाधिकार की मांग करते रहते है जिसमें प्रमुख रूप से बिहार है जो काफी दिनों से इस मांग को रखता आया है और अब तेलंगाना ने भी अपनी मांग सरकार के सामने रखी है जिसको न मानने के बाद कुछ  मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन इसका क्या यही हल है कि अगर मांग न मानी जाय तो इस्तीफ़ा दे दिया जाय। इस तरीके से अगर सभी लोगों को आरक्षण या विशेष अधिकार दे दिया जाय तो फिर क्या गारंटी है कि लोग विकास की ऊँचाई को छू ही लेंगे?                                                                   *****************************************नीरज कुमार पाठक    आईसीएआई          नोएडा

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