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कलंकित होती इंसानियत

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एक इंसान को हम इंसान की श्रेणी में तभी रख सकते है जब उसके अंदर की इंसानियत जिंदा हो, जिस इंसान के अंदर की इंसानियत मर चुकी हो उसको इंसान कहलवाने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए हर इंसान के अंदर एक इंसानियत होनी चाहिए जिससे कि वह मनुष्य का दर्द समझे, उसके हर सुख- दुख में काम आए , तभी जाकर उसको इंसान की श्रेणी में रखना जायज होगा, आज  जिस प्रकार से लोगों के अंदर से मानवता खत्म होती जा रही यह बहुत बड़ी घटना है जिस पर विचार करने की जरूरत है। अगर हम एक मानवीय विहीन घटना पर नजर डाले  तो यह दिल दहलाने वाली घटना है जो उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर में देखने को मिली जो वास्तव में मरती इंसानियत के अलावा कुछ बयां नही करता। हुआ कुछ यूं कि एक बृद्धा की मौत के बाद उसको श्मशान तक ले जाने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ, अब  जिस प्रकार का व्यवहार लोगों ने दिखाया यह बहुत ही निंदनीय है। शव किसी का भी हो, किसी भी धर्म या जाति का हो अगर उसकी मृत्यु हो चुकी है तो उसका शव पवित्र माना जाता है। शव का कोई जाति-पाँति नहीं होती फिर भी उस बृद्धा के मरने के बाद श्मशान तक ले जाने के लिए चार कंधे भी न मिल पाए तो यह मानव समाज के लिए कलंक है जो नहीं होना चाहिए। आखिरकार जिस प्रकार से उसकी बेटी ने मां के शव को एम्बुलेंस के सहारे श्मशान तक ले गयी और फिर उस शव को मुखाग्नि दी। एक बेटी ने तो अपना फर्ज पूरा कर दिया लेकिन समाज का जो फर्ज था वह पूरा  नहीं हो पाया, फिर ऐसे समाज से क्या फायदा जहां पर संवेदना शून्य हो, आखिर एक मनुष्य ही दूसरे मनुष्य के काम आता है और जब वह किसी के काम न आवें तो फिर कौन काम करेगा, लेकिन कोई इतना नहीं सोचता। आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि लोगों के बीच से क्यों मरती जा रही है इंसानियत, क्यों लोग अपने मानव समाज के लिए कुछ नहीं करना चाहते।           *****************************************नीरज कुमार पाठक      आईसीएआई       नोएडा

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