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प्रशासन अगर लापरवाही पर उतारू हो जाय, तो फिर समस्या आनी तय है। इससे समाज में अव्यवस्था का दौर शुरू हो जाता है और यही लापरवाही न जाने कितने निर्दोषों की जान ले लेती है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के रौनापार थाने के अंतर्गत आने वाले कई गांवों में लोगों ने सस्ती शराब के चक्कर में जहरीली शराब का सेवर कर लिया, जिससे क़रीब 30 लोग असमय काल के गाल में समा गये।
यह बहुत ही दर्दनाक घटना है, जबकि अभी भी कितने लोग जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे है। आज इस तरह की यह पहली घटना नहीं जब इतनी बड़ी संख्या में लोग मरे हैं। इसके पहले दूसरे राज्यों में भी लोग जहरीली शराब पीकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। बावजूद इसके न तो जनता सुधर रही और न ही प्रशासन। प्रशासन की भी नींद तभी खुलती है, जब कोई इस प्रकार की घटना होती है। उसके पहले ये लोग यह नहीं सोचते कि समाज में क्या हो रहा है।
पुलिस प्रशासन और आबकारी विभाग को यह तो पता होता है कि किस जगह पर शराब के अवैध कारखाने चल रहे हैं, फिर भी ये लोग कान और आंख बंद करके रखते हैं, क्योकि इन लोगों ने पैसे ले रक्खे हैं और जब तक मुंह बंद रहेगा, तब तक इनको दिखाई देना असंभव सा है। इसलिए शराब का ये कारोबार अवैध रूप से चलता रहा है। जनता जहरीली शराब पीकर मरती रहती है। अब चूंकि मरने वाले भी बहुत बड़े आदमी नहीं होते, इसलिए ये मीडिया में भी ज्यादा सुर्खियों में नहीं बन पाता।
अक्सर ज़हरीली शराब पीकर मरने वाले गरीब तबके के लोग ही होते हैं, जो सस्ती दारू के चक्कर में प्राण से हाथ धो बैठते हैं। लोग सस्ती दारू पीने के चक्कर में अपना भविष्य तो खराब करते ही हैं, अपने परिवार का भी भविष्य खराब कर देते है। क्योंकि अगर उस परिवार में केवल मरने वाला सदस्य ही एक सहारा था, तो उस परिवार का क्या होगा, जो उसके ऊपर आश्रित था। लेकिन उस समय दारू पीने वाले ये बिल्कुल भी नहीं सोचते की दारू शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
जब इस प्रकार की घटना देश में हो जाती है, तब प्रशासन की नींद खुलती है और वे तब शराब माफियाओं के धर-पकड़ में लग जाते हैं। अवैध शराब के जो थोक में कंटेनर पकड़े जाते हैं उनको नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू होती है, लेकिन ये सब कार्रवाई तब होती है जब 10-20 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। बावजूद इसके न तो प्रशासन और न दारू पीने वाला, कोई भी इन घटनाओं से सबक नहीं लेता।
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