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रिश्तों की टूटती मर्यादा

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रिश्तों की मर्यादा पहले के समय के अपेक्षा आज में काफी परिवर्तन है, आज लोग रिश्तों के महत्व का त्याग करके रिश्तों का मूल्य खोते जा रहे है और उनके जीवन में इसका कोई मतलब भी नही रह जाता, जिस प्रकार से रिश्तों का कत्ल निःसकोंच जारी है इससे तो फिलहाल यही लगता है। आज रिश्ता कोई भी हो उसका कोई मायने नही रह गया है, छोटी-छोटी बात को लोग अनसुना करने के बजाय उसको अपने साख से जोड़ कर देखने लगते है और फिर यही परिवार में रिश्तों का कत्ल कर देता है। एक माँ अपने बच्चों को सिर्फ इसलिए डॉट-फटकार लगाती है कि उसका प्रिय बेटा पढ़-लिख कर कहीं पर अच्छी सर्विस करें और उच्च जीवन जिये, अपने ही नही आने वाली पीढ़ी को भी अच्छी तरह जीवन व्यतीत करें, लेकिन दुर्भाग्य की संतानें इस माँ  की सोच को उल्टा समझ लेते है और अंततः बेटा , माँ का कत्ल कर देता है। अब इससे शर्मनाक  कोई बात नही हो सकती, क्योकि एक माँ कभी भी किसी भी प्रकार की द्वेषपूर्ण बाते अपने बेटे के लिए नही सोच सकती, वह जब भी सोचेगी तो उसके अच्छाई के लिए ही सोचेंगी, लेकिन आज की संतानें श्रवण कुमार के पद चिन्हों का अनुसरण करने के बजाय उसके विपरीत तरह का व्यवहार कर रहे है अब इसको संस्कृति का लोप कहें या परिवार में संस्कार की होती भारी कमी, कारण जो भी हो लेकिन सच्चाई यही है आज रिश्तों का क़त्ल का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है, लोग सभी मर्यादाओं को तांख पर रख देते है,अब कोई न तो चाचा को पहचान रहा है न तो बाबा को पहचान रहा, वह रिश्ता जो एक मजबूत गांठ बनकर जुड़ा रहता था अब वो एक हल्के झटके में ही टूट जाता है और वह रिश्ते मिनट में ही बिखर जाते है, इसलिए सभी लोगो को इन रिश्तों की अहमियत को समझना चाहिए,और इनको मजबूती के साथ निभाना चाहिये।।                                                                    *****************************************नीरज कुमार पाठक               नोयडा

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