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पूरे भारत में अगर देखा जाय तो रफ्तार का कहर अक्सर किसी न किसी के द्वारा किसी न किसी के ऊपर गिरता ही रहता है, इन घटनायों में कई निर्दोष लोग तो मारे जाते है,और कुछ तो इसकी चपेट में आ जाते है जो जिंदा रह कर भी असहाय से पड़े रहते है और भगवान से मौत की भीख मांगने को मजबूर हो जाते है।इसमें ये भी नहीं है कि चार पहिया वाले ही लोग हो बल्कि पैदल यात्री से लेकर साईकिल वाले भी चपेट में आते है, और इन यमराज रूपी चालको के गिरफ्त में आ ही जाते है। इतना ही नहीं ये मौत के सौदागर उन पुलिस वालों को भी नहीं छोड़ते जो ईमानदारी से अपने ड्यूटी का निर्वहन करते है। ये बेलगाम चालक पुलिस के ऊपर ही गाड़ी को चढ़ा देते है जिससे उनकी मौत तक भी हो जाती है । नये रफ़्तार के बढ़ते घटनाक्रम में दिल्ली के यातायात पुलिसकर्मी को ही निशाना बनाया गया जो चेकिंग के दौरान गाड़ी को रुकने का इशारा किया और चालक ने रुकने के इशारे की अनदेखी कर पुलिसकर्मी पर ही गाड़ी चढ़ा दी , जिससे कि वह जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करने को मजबूर हो जाते है। इसी प्रकार से अगर पुलिसकर्मी खनन माफिया को रोकने का प्रयास करते है तो वे भी इसी तरह के शिकार होते है, और अधिकतर केसों में ऐसा हो रहा है कि पुलिसकर्मियों की जीवन लीला ही समाप्त हो जाती है। आश्चर्य तब होता है जब समाज के कुछ बिगड़े मनुष्य ऐसी घटना को अंजाम देते है और उनके आका उनको प्रोत्साहन, जबकि जो पुलिसकर्मी ऐसी घटना में अपने प्राण देता है उसको कुछ भी नही मिलता,अगर कुछ मिलता है तो उसके परिवार को जिंदगी भर का दर्द, अब ऐसी घटनाओं को क्या कहा जाय जो एक निर्दोष के मरने का कारण होते है, आज के समय में लोग एक तो पुत्र मोह के कारण नाबालिग बच्चों को कार की चाभी सौंप देते है जिसके कारण ये बच्चे हवा में बात करने लगते है और जब ज्यादा हवा में बात करने लगते है तब उनको कार का रफ़्तार समझ में नहीं आता, जिसके कारण कार किसी न किसी से टकरा ही जाती है और उसके बाद किसी न किसी की कहानी खत्म हो जाती है, जिसके बाद वह एक इतिहास बन कर रह जाता है, यही नही कितने मामलों में नाबालिग भी कभी-कभी इतिहास बन कर रह जाता है, इसलिए रफ्तार वास्तविक रूप से मनुष्य के लिये सही नही है क्योंकि इससे अपनी और दूसरे की जान जाने का डर बना रहता है। *****************************************नीरज कुमार पाठक नोयडा
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