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विश्वविद्यालय और जेल , खेल ही खेल

Indian
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विद्यालय का अगर हम सन्धि-विच्छेद करे तो वह होगा – विद्या+आलय अर्थात वह स्थान जहां पर विद्या का निवास हो। लेकिन आज के समय मे विद्यालय की गरिमा को कुछ अराजक लोगो ने विल्कुल गिरा दिया है । और उसको देशद्रोहियो का निवास बना दिया है। जहां पर बिद्यार्जन के वजाय नामार्जन मे ध्यान लगा रहे है उनको बस एक चिंता रहती है कि किसी प्रकार से मेरा नाम हो । भले ही भारत के टुकड़े करने पड़े। क्योंकि उनको पता है कि एक वर्ग जरूर हमारा साथ देगा। एक समय था जब भारतीय विश्वविद्यालयो की अपनी अलग पहचान थी।देश-विदेश से लोग शिक्षा ग्रहण करने के लिये भारत भूमि पर आते थे और भारत के तरफ अच्छी निगाहो से देखते थे।यहाँ पर काफी समय तक शिक्षा ग्रहण करते थे। उस समय तक्षशिला और नालन्दा हमारे देश के शान थे। तब और अब के समय मे समय चक्र ने ऐसा करवट लिया है कि जेएनयू का नाम लेते ही मालूम पड़ता है कि हम पाकिस्तान के किसी विश्वविद्यालय का नाम ले रहे है। इस विश्वविद्यालय को कुछ लोगो के घटिया सोच के वजह से जो देश के अंदर इसकी साख गिरी है।उसके लिए जिम्मेदार कौन है। आज का माहौल ये हो गया है कि जिस विश्वविद्यालय से लोग पढ़ायी कर रहे है वही लोग देश विरोधी गतिविधियों मे लिप्त है। ये भारत का इकलौता विश्वविद्यालय नही है, इसमे जाधवपुर विश्वविद्यालय भी कम नही है वहाँ भी कुछ लोग देश विरोधी गतिविधियों मे सक्रिय है। इस समय विश्वविद्यालय का माहौल गर्म चल रहा है इसी कड़ी मे रह -रह कर जेलो का माहौल भी गर्म हो जा रहा है,जो वातावरण दूषित कर देता है।आखिर जेल प्रशासन और कैदियों मे क्या दिक्कत हो रही जो बार-बार कैदियों को गुस्सा आ जाता है। कही न कही तो खाली स्थान जरूर है जिससे कैदियों की भौहे तन जाती है ।वाराणसी और देवरिया मे तो कैदियों ने खूब हंगामा किया । अब एक तरफ विश्वविद्यालय और दूसरे तरफ जेल , इन दोनो जगहों पर एक चीज मे समानता है कि दोनो जगह पर आक्रोश है लेकिन एक जगह पर गन्दी मानसिकता के वजह से,क्योंकि जे एन यू मे कोई समस्या नही है जिसको सुलझाया जाय वहाँ जो भी स्थिति बनी है वह बिश्वबिद्यालय प्रशासन की लापरवाही के वजह से ।अगर विश्वविद्यालय प्रशासन चाहे तो ऐसी घटनाओ को रोक सकता है,लेकिन वह नही चाहता । लेकिन दूसरी जगह हमारे जेल प्रशासन की लचर ब्यवस्था के परिणामो के वजह से कैदियों के साथ सही वर्ताव न होने के कारण जेलो मे समस्याएं आती है। इसलिए इन दोनो मामलो मे सख्ती की जरूरत है क्योकि इन मामलो मे अगर सख्ती नही दिखायी गयी तो ये सुलगते आग ज्वालामुखी का रूप न ले ले ।इसको दावानल होने से पहले दबा देना चाहिये। ————————————————————————— नीरज कुमार पाठक-आई.सी.ए.आई.भवन सी–1 सेक्टर–1 नोयडा 201301

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