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शिक्षा में भयावहता

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आज के समय में ज्ञान का मंदिर कहे जाने वाले स्कूलों में जिस प्रकार का अज्ञानता पहुँच गया है यह इस मंदिर पर धब्बा लगाने के लिए काफी है। आज स्कूल के अंदर अध्यापकों का जिस तरह से सम्मान का स्तर गिरते जा रहा है यह भी बहुत ही चिन्तनीय विषय हो गया। आज जिस प्रकार से जमाना बदल रहा है उससे तो यही लग रहा है कि समाज में कितनी प्रदूषित शिक्षा का प्रवाह हो चला है। लेकिन इस बदलते परिवेश का ये कतई मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि हम अपने माता-पिता, गुरु-शिष्य तक को भूल जाए और इतना भूल जाये कि उनके साथ अनैतिक व्यवहार कर डाले।यह कोई बदलाव की परिभाषा नहीं कही जा सकती। आज की पीढ़ी इतनी क्रूर क्यों हो रही है कि उसको अपने माता-पिता की बातें भी इतनी नागवार लगती है कि वे उनके मर्डर तक का सोच ला देते है और उसको अंजाम भी देते है, ऐसा इस भारत भूमि में कौन सा बदलाव आ गया है कि जो गुरु ज्ञान देने के लिए नियुक्त है उसी की हत्या कर दी जाती है। धन्य है मेरा भारत! जो कभी गुरु के एक इशारे पर शेरनी का दूध लाने के लिए अंधेरी रात का बिना परवाह किये निधड़क, निडर होकर गुरु की इच्छा पूरी करता , आज उसी भारत के कलियुगी लाल इस कदर बेपरवाह हो चुके है कि अपने गुरु को चाकू से, अपने प्रिंसिपल को गोली से उड़ाने में बिल्कुल भी नहीं सोचते कि अगर कोई शिक्षक डांट ही दिया तो कोई बात नहीं, ये हमारे है तो गुरु। बेपरवाह बिगड़े पिता की संतान। सबसे बड़ी बात आज ये है कि अभिभावक भी अपने बच्चों को बिल्कुल भी बंधन में नही रखना चाहते जिसके कारण उनका दिमाग सातवें आसमान पर रहता है और वे उसी का फायदा उठा कर अमर्यादित कार्यो को अंजाम दे देते है, लेकिन आज के समय में जिस प्रकार की घटनाएं बार-बार हो रही है उस पर गम्भीरता से स्कूल प्रशासन, शासन और अभिभावक को सोचने की ज़रूरत है क्योकिं अगर लोगों ने इस मामले पर विचार-विमर्श नहीं किया तो आने वाला कल कितना भयावह होगा इसकी कल्पना करना भी नामुमकिन होगा। *****************************************नीरज कुमार पाठक आईसीएआई नोएडा

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