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‘स्वर्णिम काल’ में भाजपा

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भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के बाद से जिस प्रकार अपना ग्राफ़ ऊंचा किया है, यह भाजपा के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है , क्योकिं एक समय जहां भाजपा को 2 सीट भी मिलनी मुश्किल थी, आज वही भाजपा 29 राज्य और 2 केंद्र शासित राज्यों में से 21 राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर भगवा झंडा लहरा चुकी है। बाक़ी जो बचे हुए राज्य है उसमें भी लहराने की पुरजोर कोशिश चल रही है।

 

 

यह पीएम मोदी के कुशल नेतृत्व का परिणाम ही है कि जिस त्रिपुरा के अंदर 2013 में भाजपा के 50 उम्मीदवार में से 49 की जमानत ज़ब्त हो जाय उसी त्रिपुरा के अंदर 2018 में सहयोगी दलों के साथ 43 सीटें जीतकर सरकार बनाना और 25 साल से वामपंथी दलों के शासन को खत्म करके अपना राज्य स्थापित करना यह कम बात नहीं है। इसके उलट आज कांग्रेस का बुरा हाल है। यह वही पार्टी है जो कई दशक तक देश के ऊपर राज की और आज मात्र गिनती के 3 राज्यों पर ही काबिज़ रह गयी है।

 

भाजपा का बढ़ोतरी जारी है जो त्रिपुरा और नागालैंड को भी अपने कब्जे में ले लिया है। एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी का तेज़ी से फैलाव हुआ है और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में पार्टी त्रिपुरा जैसे राज्यों में भी भगवा लहराने में कामयाब हो गयी, जहां पर भाजपा का कोई नामो-निशान नहीं था, यह भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत बड़ी कामयाबी है। ऐसे में अब भारतीय जनता पार्टी की अगली रणनीति उन दक्षिणी राज्यों में अपने प्रभाव को बढ़ाने की रह गयी है, जहां पर पार्टी को अब तक कोई खास करिश्मा दिखाने में सफलता नहीं मिल पाई।

 

इसमें केरल, पश्चिम बंगाल ,तमिलनाडु और उड़ीसा विशेष रूप से है जहां पर भारतीय जनता पार्टी अपना झंडा नहीं लगा पाई। आज देश के 68 फीसदी जनसंख्या और 75 फीसदी क्षेत्र पर भाजपा ने अपना प्रभाव जमा रखा है। भाजपा की इस उपलब्धि को अगर सही मायने में देखा जाय तो यह भाजपा के लिए किसी स्वर्ण युग से कम नहीं है, इसका कारण भी यही है कि कोई भी एक बार शिखर पर जाता है कुछ समय बाद वह नीचे ही आएगा उसका ऊपर जाने का कोई मतलब ही होता।

 

इस प्रकार से भाजपा को अगर बचे हुए कुछ राज्यों में से दो-चार में भी सरकार बनाने में सफलता मिल जाती है तो इसको हम भाजपा का स्वर्ण काल ही कह सकते है या फिर इस पार्टी को हम इस तरह से भी कह सकते है कि स्वर्णिम काल में भाजपा को रख सकते है।

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