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एक अविस्मरनीय प्रेरक घटना

chandravilla
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यह प्रसंग काफी समय पूर्व मंच पर प्रकाशित किया किया था ऐसे प्रसंग जीवन को एक नयी दिशा प्रदान करते हैं और कुछ शिक्षा भी देते हैं,कि संकटग्रस्त के लिए की गयी आपकी छोटी सी सहायता उस व्यक्ति के लिए कितनी महत्पूर्ण हो सकती है.मंच पर उस समय वर्तमान सदस्यों में से बहुत जन नए हैं,अतः कुछ संशोधन के साथ पुनः प्रकाशित कर रही हूँ
प्रेरक प्रसंग का नाम दूं ,चिर स्मरणीय घटना कहूं,प्रभु कृपा का एक स्वरुप या एक संस्मरण जिंदगी का समझ नहीं पा रही हूँ पर मेरे जीवन में घटित ये घटना सदा प्रेरणा देती है.
वर्षों पुरानी घटना है अपने पति के साथ दक्षिण भारत के ट्रिप पर जाने का कार्यक्रम बना.इतनी लम्बी रेल यात्रा का प्रथम अवसर था.मन में उत्साह,नूतन देखने की उत्कंठा पर सब कुल मिला कर बहुत अच्छा लग रहा था. हमारे अनुभव की कमी के कारण सयुंक्त परिवार में सभी लोग अपने अपने स्तर से हमें सुझाव दे रहे थे.- “कोई कुछ दे तो कुछ खाना नहीं,किसी पर विश्वास नहीं करना,रात्रि में सोते समय सामान का ध्यान रखना,हर स्टेशन पर उतरना नहीं,पैसे अलग अलग जगह पर रखना”( उस समय आज की भांति क्रेडिट कार्ड,डेबिट कार्ड ATM जैसी बैंकिंग व्यवस्थाएं व सैलफोन जैसी सुविधाएँ नहीं थी. .) आदि……….प्रोग्राम के अनुरूप बस से दिल्ली पहुंचे रात्री में ट्रेन थी.सब हिदायतों को ध्यान रखते हुए कन्याकुमारी,रामेश्वरम त्रिवेंद्रम,मदुरई तथा मैसूर,बंगलोर व कुछ अन्य स्थानों का भ्रमण करते हुए हम ,यात्रा का आनंद ले रहे थे. अब हमारा वापस दिल्ली पहुँचने का कार्यक्रम था
जोलारपेट नामक स्थान से ट्रेन पकडनी थी अत स्टेशन पर वेटिंग रूम में प्रतीक्षा में बैठे थे .एक सज्जन ने हमसे पानी माँगा , .पानी उनको दे दिया.ट्रेन आने के बाद पुनः वापसी यात्रा प्रारंभ हुई अब सीधा दिल्ली पहुंचना था अतः ट्रेन में बैठने के बाद सारा सामान एक साथ मेरे बड़े पर्स में रख दिया.टिकट,सारे पैसे,ज्यूलरी,घडी अन्य बहुत सी वस्तुएं. आदि .अचानक ही आंध्रप्रदेशमें विजयवाडा पहुँचने पर पता चला कि मेरा पर्स गायब है.हमारे होश उड़ गए, जब पता चला अन्य सहयात्रियों से,कि रेल के (उस समय) नियमानुसार यदि टिकट मांगने पर टिकेट चेकर को नहीं दिखाया तो हमको वो उतार सकता है.हम बहुत घबराये हुए थे,अपने इष्ट का ध्यान कर रहे थे पर मन परेशां था.हमारे पास ५पैसे भी नहीं थे यात्रा अभी दो दिन की शेष थी.
थोड़े समय पश्चात् वही सज्जन जिन्होंने हमसे पानी लिया था हमारे डिब्बे में आये,उनको बातों बातो में पता चल गया कि हम इस समय टिकट सहित सब सामान खो चुके हैं पहले उन्होंने पर्स खोजने का भी प्रयास किया,परन्तु वो मिलने के लिए नहीं खोया था.उन्होंने हमको धैर्य व साहस से काम लेने को कहा.साथ ही बताया कि किसी को पता न चलने दो कि आपका सारा सामान खो गया है.उन्होंने हमको अपने ईश्वर का स्मरण करने को कहा.हमारी चाय भोजन आदि की व्यवस्था अपनी ओर से (आगे के लिए ) करवाई.पता चला कि वो सेना में सिपाही थे.शरफुद्दीन उनका नाम था.पूरे समय हमारी हिम्मत बंधाते हमारी जरूरतों का ध्यान रखा.टी टी ने टिकट चेक किया उस समय हमारी स्थिति बहुत दयनीय थी,हम हनुमान चालीसा का जाप कर रहे थे. और प्रभुकृपा से हमारा टिकट बिना चेक किये टिकट चैकर आगे चला गया.
तद्पश्चात उन्होंने हमसे ट्रेन से उतरने के बाद आगे के सफ़र की जानकारी ली तथा पुछा कितने धन में आप अपने घर पहुँच सकते हैं.हिसाब लगाकर पचीस रु उन्होंने हमें दिए उस समय २५ रु बहुत छोटी राशि नहीं थी और जरूरत के समय तो डूबते को तिनके का सहारा के सामान थी वो राशि..उनके पास सेना का पास था पर हमारा सामान स्टेशन से बाहर निकलने की व्यवस्था स्वयं की हमको प्लेटफार्म टिकट ला कर दिए,फिर उनको जम्मू की ट्रेन पकडनी थी.अतः इस निवेदन के साथ कि आप ये धन वापस मत भेजना उन्होंने हमसे विदा ली उनको अपने बच्चों के लिए पेठा, पेड़े आदि कुछ सामान भी खरीदना था परन्तु उनकी जेब में सीमित धनराशी थी.अतः उन्होंने कुछ नहीं खरीदा.
हम अपने गंतव्य तक पहुँच गए.लेकिन उस अमूल्य सहायता को क्या हम कभी भुला सकते हैं.इस घटना ने बहुत सारे अनुभव दिए.हिन्दू मुस्लिम नहीं सच्ची मानवता थी ये. यदि हमारे पास बहुत सारा धन है और उसमें से हम कुछ राशि से किसी की सहायता करते हैं वो इतनी महत्पूर्ण नहीं, जितना कि अपनी आवश्यकताओं पर नियंत्रण लगाकर सहायता करना. वास्तव में वो अपने विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सदस्य भी रह चुके थे , और सेना में बहादुरी दिखने का पुरस्कार भी उनको मिला था. वास्तविक सैनिक धर्म का निर्वाह किया था उन्होंने. हमको ये सबक सिखाया था कि हम सबसे पहले इंसान बने,आपद्ग्रस्त की यथासंभव सहायता करें.आप क्या नाम देंगे इस वृतांत को .

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