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कैसे बदले गुरु शिष्यों की सोच

chandravilla
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शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है.कॉन्वेंट स्कूल्स,पुब्लिच्स्कूल्स में(अधिकांश) एक दिन पूर्व ही शिक्षकों को कुछ उपहार आदि देना,खाना पीना ,थोडा बहुत सांस्कृतिक (तथाकथित) संपन्न होता और हो जाती है ओपचारिकता पूरी हो जाती है.सरकारी स्तर पर तो कुछ सिफारिशी अध्यापकों को राज्य व् राष्ट्रीय स्तर पर पुरुस्कार मिल जाता है,जिनमे अधिकांश तो शायद शिक्षक के नाम पर कलंक ही हैं (ये अभी समाचारपत्रों की रिपोर्ट थी)कुछ भाषण और हो गया शिक्षक दिवस संपन्न.
सवाल तो ये है की क्या आज शिक्षक अपना दायित्व भूल गए हैं,क्यों छात्रों के मध्य आज शिक्षक का सम्मान लुप्त हो रहा है?(अपवादों को अलग रखा जाये) मेरे विचार से शिक्षा का व्यवसायीकरण इसका मूल कारन है उचित -अनुचित साधनों के प्रयोग से डिग्री प्राप्त कर शिक्षक बन जाना आत्मसम्मान को ताक पर रख गुरु शिष्य व् शिष्या के पुनीत संबंधों को भूला देना, शिक्षा को उधोग बना देना ,जहाँ केवल धनार्जन ही शिक्षण संस्थाओं का उद्देश्य बन गया है तो आप किस नैतिकता की आशा कर सकते हैं उन शिक्षकों से जिनसे दोगुने तिन्गुने वेतन पर हस्ताक्षर करा नाममात्र का वेतन दिया जाता है.ऐसा नहीं की केवल इन्ही शिक्षण संस्थाओं में ऐसा होता है. स्तिथि तो कमोवेश सभी जगह एक जैसी है.
आज आवश्यकता शिक्षक को अपना गौरव ,अपना सम्मान बनाये रखते हुए अपना,पुरातन पद प्राप्त करना है ,समाज का दृष्टि कोण बदलना है. क्या आप सुझा सकते है की शिक्षक के प्रति सबकी वही सम्मानजनक सोच कैसे बन सकती है

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