Menu
blogid : 2711 postid : 87

अधिकार

chandravilla
chandravilla
  • 307 Posts
  • 13083 Comments

दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो किसी भी धर्म को नहीं मानते हैं। वहीं, कई लोग ऐसे भी हैं जो धर्म को पहले मानते थे बाद में नास्तिक बन गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह भी खुद को नास्तिक मानते थे। वह कहते थे उन्‍हें किसी भी धर्म से लगाव नहीं है। इसी तरह बॉलीवुड में भी कुछ बार ऐसी घटनाएं हुईं जब अभिनेता या अभिनेत्री नास्तिक बनने की कगार पर पहुंच गए। कई फिल्‍मों में भी नास्तिक होने की कहानियों को दिखाया गया और इनमें अभिनेताओं ने नास्तिक होने के किरदारों को निभाया है।

आज एक छोटी सी पुरानी कथा से अपनी बात को शुरू करती हूं। कथा कुछ इस प्रकार है, एक वृद्धा और उसके बुढ़ापे की लाठी उसका एकमात्र पुत्र गरीबी में अपना जीवन निर्वाह करते थे। अभावग्रस्त जीवन होने पर भी खुश थे, उनके जीवन की गाडी चल रही थी, संतोषी जीव थे। बेटा लकड़ियां काट कर उनको बेच कर कमाए गए धन को घर लाता था। माँ घर की व्यवस्था किसी न किसी प्रकार चला लेती थी। माँ अपने बेटे की मंगल कामना करते हुए कोई व्रत रखती थी, जिसमें कुछ मीठा बनाकर वो व्रत संपन्न करती थी।

ईर्ष्यालु पडोसिओं से ये सहन नहीं हुआ और जैसा की आम कहानिओं में कोई न कोई खलनायक अपने कुचक्रों से परिवार की शांति भंग करने में सफल हो जाता है। पडोसिओं ने लड़के के कान भर दिए कि तू इतने परिश्रम से धन कमाता है और तेरी माँ मिष्ठान्न खा कर सब उड़ा देती है। बुराई में सदा आकर्षण होता है। लड़के को भी ये बात बुरी लगी और उसने माँ को बुरा भला कह अपनी कमाई पर अपना अधिकार जताया।

माँ तो आखिर माँ है बेटे का अमंगल कैसे सोच सकती है। उसने भूखे ही उपवास करना प्रारंभ कर दिया। कुछ समय बाद उस राज्य पर कोई संकट आयातो उसके निवारणार्थ राजा के सैनिक वृद्धा के पुत्र को घर से जबरन उठा कर ले जाने लगे। राजाज्ञा का उल्लंघन करना असंभव था अतः बुढिया ने उनको कुछ देर रुकने को कहा तथा वही मीठा पकवान जिससे वह अपना व्रत समाप्त करती थी,उसको बना कर उसको दिया और स्वयम उसके लिए प्रार्थना करने लगी। संयोग से उस दिन वही त्यौहार था। अंतत वृद्धा का पुत्र सही सलामत अपने घर वापस आ गया।

ये कथा तो पौराणिक है, परन्तु इसके उल्लेख के पीछे मेरा उद्देश्य एक बिंदु की और ध्यान आकृष्ट करना है और वह है,अधिकारजिस प्रकार वृद्धा का बेटा अपनी कमाई पर तो अपना अधिकार जताता है, परन्तु माँ के प्रति मेरा भी दायित्व है, ये भूल जाता है। आज हर व्यक्ति अपने अधिकारों को लेकर (वैध या अवैध ) मरने मारने को उतारू है। यद्यपि अधिकारों के प्रति जागरूक होना भी चाहिए। जन्म ग्रहण करने से पूर्व ही व्यक्ति के अधिकार सुरक्षित हो जाते हैं। माता के गर्भ से संसार में आने से पूर्व ही माता की ममता,देखभाल पर बच्चे का अधिकार होता है। तद्पश्चात परिवार के सभी सदस्यों का लाड प्यार,सामाजिक सुरक्षा,पैत्रिक संपत्ति पर अधिकार,शिक्षा-दीक्षा आदि।

समाज में अधिकार व्यक्ति को स्वयं ही मिल जाते हैं। उन अधिकारों को उपभोग हम स्वता ही करते हैं और इतने आदि हो जाते हैं कि जरा सी बाधा आने पर तोड़फोड़ और कुछ भी हानि पहुचाने को तैयार हो जाते हैं।

मेरे विचार से कर्तव्यों का पालन अनिवार्य होना चाहिए एवं न मानने पर दंड का प्रावधान होना भी आवश्यक हो। हमको ये नहीं भूलना चाहिए की परिवार, समाज व् देश सभी क्षेत्रों में लेनदेन का सिद्धांत लागू होता है। जितना हम लेते हैं उससे से अधिक भी संभव न हो तो उतना दिए बिना सर्वांगीण विकास संभव नहीं। अतः कर्तव्यपालन करते हुए अपने सभी अधिकारों का उपभोग करिए।
जय भारत।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh