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अन्ना का प्रभाव चुनाव परिणामों में क्या रंग दिखायेगा,इस विषय पर विचार करने से पूर्व अन्ना और उनके आंदोलन की संक्षिप्त पृष्ठभूमि पर विचार करना होगा.
“अन्ना नहीं आंधी है,देश का दूसरा गाँधी है ” अधिक समय नहीं व्यतीत हुआ जब समस्त राजनैतिक ,सामाजिक ,गली मोहल्ला ,पान की दुकान ,नुक्कड़ तथा घर घर यही नारा बुलंद था.अन्ना का व्यक्तित्व एक चमत्कारिक व्यक्तित्व के रूप में देश वासियों में नव उत्साह,उमंग को संचारित करने वाला बन गया.वास्तव में एक आंधी के रूप में ही अन्ना ने सभी राजनैतिक दलों को झकझोर चिंतन के लिए विवश कर दिया और उन दलों को अपने पांव के नीचे से जमीन सरकती दिखने लगी.
महाराष्ट्र के एक छोटे से ग्राम रालेगन सिद्धि में १९३७ में एक बहुत बड़े निर्धन कृषक परिवार में जन्म लेने वाले अन्ना का बचपन बहुत हो कष्टों में व्यतीत हुआ.शिक्षा-दीक्षा भी उनकी अधिक न हो सकी,कभी फूल विक्रेता के यहाँ नौकरी तो कभी फूल विक्रेता का कार्य जीवन यापन के लिए उनको करना पड़ा..१९६२ में भारत-चीन युद्ध के समय जब देश में सेना में नवयुवकों को भर्ती के लिए आह्वान किया जा रहा था , तो शारीरिक मापदंड सेना के अनुरूप न होने पर भी एक ड्राईवर के रूप में अन्ना सेना में प्रविष्ट हुए.१९६५ के युद्ध के समय अन्ना के सामने ही कुछ सैनिकों के गोलाबारी में शहीद हो जाने के बाद अन्ना का कोमल मन कुछ विचलित हुआ और १५ वर्ष सेना में नौकरी कर स्वेच्छा से निवृत्ति ले ली सेना से.उनके अनुसार उन्होंने स्वामी विवेकानंद की एक पुस्तक से प्रेरित हो कर जन सेवा का व्रत लिया .
अपने छोटे से पिछड़े गाँव में अन्ना वापस आ गये,गाँव में शिक्षा के लिए एक स्कूल की व्यवस्था के लिए अन्ना का प्रयास रंग लाया और गाँव के विकास के लिए प्रयासरत अन्ना की पहिचान बढी स्वयं गाँव वासियों के साथ कृषि में जल संरक्षण जैसे उपायों का सहारा ले कर अन्ना ऩे अपने गाँव को विश्व स्तर पर पहिचान दिलाई..महाराष्ट्र में कभी शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन वाली सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों को पद से हटाने को लेकर तो कभी एन.सी पी +कांग्रेस के भ्रष्ट मंत्रियों को उनके पद से हटवाने को अन्ना संघर्षरत रहे.
राष्ट्रीय स्तर पर अन्ना की पहिचान बनी ,सूचना अधिकार दिलवाने के लिए कार्य करने हेतु.इसके लिए अन्ना ऩे १९९७ में अभियान प्रारम्भ किया .२००३ तक प्रयासरत रहकर भी कुछ ठोस सफलता न मिलने पर अन्ना अगस्त में ही अनशन पर बैठे .१२ दिन तक अन्ना निरंतर अनशन पर डटे रहे.. अंततः संसद में बिल पारित हुआ.सरकार इस क़ानून को कुछ ढीला बनाना चाह रही थी परन्तु अन्ना के प्रयासों के चलते सफल न हो सकी और अन्ना को पुनः अनशन का सहारा लेना पड़ा.और सरकार ऩे अपना इरादा बदला. देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता को मुक्ति दिलाने हेतु अन्ना ऩे ५ अप्रैल २०११ को दिल्ली में जन्तर-मन्तर पर अनशन प्रारंभ किया अपने सेनानियों सुश्री किरण बेदी, उच्च प्रशासनिक पदासीन रहे अरविन्द केजरीवाल ,विधिवेत्ता शांति भूषण व प्रशांत भूषण तथा संतोष हेगड़े आदि उनके साथ डटे रहे.प्रारम्भ में तो सरकार ऩे इस आन्दोलन के प्रति उपेक्षा ही बरती परन्तु मीडिया के प्रयासों से आन्दोलन जन जन तक पहुंचा और अगाध जन समर्थन के चलते सरकार ऩे बला टालने के उद्देश्य से १६ अगस्त तक लोकपाल बिल प्रस्तुत करने की मांग स्वीकार कर ली.
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सभी देशवासियों के ह्रदय में आशा की किरणें जगमगाने लगी.खोटी नियत वाली सरकार ने एक कमजोर ,नख दंत विहीन लोकपाल विधेयक तैयार कर जनता के साथ धोखा किया ( वृतांत और घटनाक्रम से सभी पाठक परिचित हैं.)अन्ना के साथ जनता भी स्तब्ध रह गई.अन्ना ने पुनः आंदोलन करने की घोषणा की, परन्तु स्वयं अन्ना का स्वास्थ्य,अन्ना टीम की कमियां , सरकार की कुटिलता खलनायक व खलनायिका के रूप में दीवार के रूप में खड़ी हो गईं और जनता का वांछित था पूर्ण नहीं हो सका ,पूर्ण हुआ सरकार का मनोरथ.अर्थात चुनावों से पूर्व ही किसी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुरूप स्वामी रामदेव और अन्ना द्वारा भ्रष्टाचार और काला धन वापस लाने के मुद्दे पर देश में जो उबाल,जोश दिख रहा था ,वो कहीं लुप्त होने लगा.
पांच राज्यों में विधान सभा के चुनावों की घोषणा २४ दिसंबर २०११ को कर दी गई.जनता में जोश तो दृष्टिगोचर हुआ ,परन्तु चुनाव का प्रमुख मुद्दा ,जिसके कारण सभी राजनैतिक दलों की हालत शोचनीय थी कहीं नेपथ्य में गुम होने लगा.परिणाम स्वरूप में चुनावी घोषणा पत्रों में भ्रष्टाचार का नाम तो आया परन्तु प्रमुख मुद्दे वही रहे ,जाति ,सम्प्रदाय,अल्पसंख्यकों का आरक्षण ,व्यवहारिक रूप में धनबल और बाहुबल का भरपूर दुरूपयोग .करोड़ों रूपया पकड़ा गया ,चुनाव आयोग की कृत्रिम सख्ती के कारण शेष दलों के तो पर कतरने का प्रयास किया गया परन्तु सत्तारूढ़ कांग्रेस और उनके सहयोगियों का चुनाव आचार संहिता का धज्जियां उड़ाने का क्रम जारी है.सलमान खुर्शीद पर कार्यवाही की चुनाव आयोग की कोरी धमकी ,बेनीप्रसाद वर्मा द्वारा मुस्लिमों के आरक्षण का पुनः राग आलापा जाना,राहुल गाँधी के भीड़ सहित रोड शो और अजित सिंह के पुत्र जयंत केद्वारा खुले आम नोट बांटा जाना ………………..आदि आदि.
परिणाम तो अभी भविष्य ही बताएगा ,परन्तु अन्ना ने जिस प्रकार हिसार चुनाव में जनजागृति के द्वारा एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था ,वो सब तो दूर दूर तक भी दृष्टिगोचर नहीं हो पा रहा है.आज भी दागी भ्रष्ट प्रत्याशियों का जमावडा चुनावी समर में कमर कसे तैयार है,येन केन प्रकारें सत्ता हथिया कर प्रदेश और फिर देश को बर्बाद करने के लिए .जनता के समक्ष विकल्प बहुत थोड़े हैं,अर्थात बहुत ही कम प्रत्याशी ऐसे हैं जिन पर भरोसा किया जा सकता है,शेष तो वही सत्ता लोलुप गिद्धों और बाजों का समूह है.
समस्या मूलतः यही है कि हमारा संवैधानिक ढांचा इस प्रकार का है,कि सरकार बनाता है बहुमत प्राप्त दल ,देश-प्रदेश का भला तभी संभव है जब सत्ता उपयुक्त ,ईमानदार व देश के लिए कुछ करने की भावना रखने वालों के हाथ में हो ,अन्यथा तो पुनः वही संसाधनों की कमी +सत्तारूढ़ दल की तानाशाही भुगतने को अभिशप्त होना पड़ेगा.अवसरवादी दलों द्वारा खिचड़ी सरकार बनाने पर बस वही हाल होना है “अंधा बांटे रेवड़ी ….”
अंत में एक बात और कहना शेष है,निश्चित रूप से रामदेव और अन्ना का आंदोलन ठंडा पड़ना राजनीतिज्ञों की कुटिलता का परिणाम रहा है,परन्तु क्या हम स्वयं दोषी नहीं ? जो कुछ भी हमारी उदासीनता का परिणाम होता है,वो हमको ही भुगतना पड़ता है,राजनेताओं को तो अपना स्वार्थ सिद्ध करना ही होता है, समस्याओं के चक्रव्यूह में उलझा देश विकास में पिछड जाता है. हमारा भी दायित्व बनता है कि उस मशाल को प्रज्वलित रखते हुए हम भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को जोर शोर से आगे बढ़ाएं और वर्तमान चुनाव के साथ आगामी चुनावों में भी भ्रष्ट सत्ता को उखाड फैंकें.
अन्ना का प्रभाव एक क्षेत्र में अवश्य दिख रहा है,मतदान का बढ़ता प्रतिशत ,परन्तु इतनी विशाल जनसंख्या वाले देश में तो अन्नाओं की पूरी सेना तैयार हो सकती है,जो जनता का मार्गदर्शन कर देश को विकसित बना सकें और पुनः विश्व गुरु के पद पर हमारा देश आसीन हो सके ,अतः दोषारोपण की दलदल से बाहर निकल कर जो कमियां इस आन्दोलन में रहीं उनको दूर कर जन जागरण की मशाल को प्रज्वलित रखना आवश्यक है.
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