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(एक दिन किसी विषय पर चर्चा के मध्य जब मेरे द्वारा श्री राजीव दीक्षित जी की चर्चा की गई तो ऐसा लगा कि उनके संदर्भ में कुछ भ्रांतियां हैं,और न ही आम आदमी को कोई विशेष जानकारी है.ये जानकर दुःख हुआ कि जिस व्यक्ति ने अपनी उच्च शिक्षा ,अपना करियर ,सब कुछ अपने देश के लिए न्यौछावर कर दिया,उनके प्रति इतनी उपेक्षा.यही सोचकर जन्मतिथि ,उनकी पुण्य तिथि 30 नवम्बर पर कुछ जानकारी साझा कर रही हूँ )
जन्म -मृत्यु एक तिथि को ही होना क्या विचित्र संयोग है.श्री राधे श्याम जी एवं श्रीमती मिथलेश जी के ज्येष्ठ पुत्र राजीव दीक्षित जी के जीवन का ऐसा ही संयोग रहा.पुत्र के जन्म पर परिवार में जिस दिन खुशियाँ मनाई जाती रही होंगी,वही दिन इतनी छोटी सी आयु में ही उनकी पुण्य तिथि बन जाएगा , ऐसा कभी किसी ने विचार भी नहीं किया होगा. 30 नवम्बर 1967 को अलीगढ में अतरोली तहसील स्थित ग्राम नाह में जन्मे राजीव जी पर परिवार के संस्कारों का पूर्ण प्रभाव था.स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार में जन्मे राजीव जी महान क्रांतिकारी भगत सिंह ,उधम सिंह जी ,आज़ाद,बिस्मिल तथा अन्य क्रांतिकारियों के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे.महात्मा गांधी की स्वदेशी विचारधारा तथा ग्रामीण उत्थान की अवधारणा उनके अंतरतम को स्पर्श करती थी.
उन्होंने जनवरी 2009 में “भारत स्वाभिमान न्यास” कि स्थापना कि तथा इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा राष्ठ्रीय सचिव बने | स्वाभिमान ट्रस्ट विश्वविख्यात योग गुरू बाबा रामदेव की योग क्रांति को देश के सभी 638365 गांवों तक पहुंचाने तथा स्वस्थ, समर्थ एवं संस्कारवान भारत के निर्माण के लक्ष्यों को लेकर स्थापित एक ट्रस्ट है। इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार, गरीबी, भूख, अपराध, शोषण मुक्त भारत का निर्माण कराना है उन्होंने ही बताया की हमारे द्वारा खून पसीने की कमी से दिए गए टेक्सों का 80 % हिस्सा तो नेताओं और नौकरशाही के ऊपर ही खर्च हो जाता है और केवल 20 % हिस्सा ही विकास कार्यों में लगता है . यही व्यवस्था अंग्रेज राज के समय से चली आ रही थी, जो अभी तक चल रही है .सबसे दुखद तो ये है कि अंग्रेज तो आये ही लूटने थे परन्तु अब हमको वो लूट रहे हैं,जो हमारे प्रतिनिधि बनकर भाग्य विधाता बने हैं. भारत को विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनाने को संकल्पित ‘भारत-स्वाभिमान’ के उद्देश्यों को प्रचारित-प्रसारित करते हुए भ्रमण के समय आप को हृदयाघात हुआ और आपने अपने कर्मक्षेत्र में प्राणों का उत्सर्ग कर भारत मां को आर्थिक गुलामी से मुक्त करवाने हेतु अपना बलिदान कर दिया। काल के क्रूर पंजो से उन्हें छीन लिया.जिसकी आवश्यकता भूलोक पर है लगता है ईश्वर भी उन्ही को अधिक प्रेम करते हैं.
श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, भारत में प्रक्षेपास्त्रों की जो परियोजना चली उसके पितामहः माने जाते है . श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी से जब एक दिवस पूछा गया कि आप इतने महान वैज्ञानिक बन गए, इतनी उन्नति आपने कर ली, आप इसमें सबसे बड़ा योगदान किसका मानते है, तो उन्होंने उत्तर दिया था कि ” मेरी पढ़ाई मातृभाषा में हुई है अतः मैं इतना ऊँचा वैज्ञानिक बन सका हूँ “, आपको ज्ञात होगा कलाम जी की १२ वीं तक की पढ़ाई तमिल में हुई है , उसके उपरांत उन्होंने थोड़ी बहुत अंग्रेजी सीख स्वयं को उसमें भी दक्ष बना लिया किंतु मूल भाषा उनकी पढ़ाई की तमिल रही . कलाम जी के अतिरिक्त इस परियोजना में जितने और भी वैज्ञानिक है उन सभी की मूल भाषा मलयालम, तमिल, तेलगु, कन्नड़, बांग्ला, हिंदी, मराठी, गुजराती आदि है अर्थात हमारी मातृभाषा में जो वैज्ञानिक पढ़ कर निकले उन्होंने स्वदेशी तकनीकी का विकास किया एवं देश को सम्मान दिलाया है . परमाणु अस्त्र निर्माण एवं परीक्षण भी श्री होमी भाभा द्वारा स्वदेशी तकनीकी विकास के स्वप्न, उसको पूर्ण करने हेतु परिश्रम की ही देन है . अब तो हमने परमाणु अस्त्र निर्माण एवं परीक्षण के अतिरिक्त उसे प्रक्षेपास्त्रों पर लगा कर अंतरिक्ष तक भेजने में एवं आवश्यकता पढ़ने पर उनके अंतरिक्ष में उपयोग की सिद्धि भी हमारे स्वदेशी वैज्ञानिकों ने अब प्राप्त कर ली है . यह भी संपूर्ण स्वदेशी के आग्रह पर हुआ है . अब तो हमने पानी के नीचे भी परमाणु के उपयोग की सिद्धि प्राप्त कर ली है ,संपूर्ण स्वदेशी तकनीकी से निर्मित अरिहंत नामक परमाणु पनडुब्बी इसका ज्वलंत प्रमाण है | जल में, थल में, अंतरिक्ष में हमने विकास किया | यह सारी विधा का प्रयोग स्वदेशी वैज्ञानिकों ने किया, स्वदेशी तकनीकी से किया, स्वदेशी आग्रह के आधार पर किया एवं स्वदेशी का गौरव को संपुर्ण विश्व में प्रतिष्ठापित किया |यह कार्य उच्च तकनीकी के होते है प्रक्षेपास्त्र, उपग्रह, परमाणु विस्फोटक पनडुब्बी, जलयान, जलपोत महा संगणक (सुपर कंप्यूटर) निर्माण आदि एवं इन सब क्षेत्रों में हम बहुत आगे बढ़ चुके है स्वदेशी के पथ पर | स्वदेशी के स्वाभिमान से ओत प्रोत भारत के महा संगणक यंत्र ” परम 1000 (super 1000) ” के निर्माण के जनक विजय भटकर (मूल पढ़ाई मराठी ) की कथा सभी भारतियों को ज्ञात है, उनके लिए प्रेरक है . इतने सारे उदाहरण देने के पीछे एक ही कारण है वह यह की भारत में तकनीकी का जितना विकास हो रहा है वह सब स्वदेशी के बल से हो रहा है, स्वदेशी आग्रह से हो रहा, स्वदेशी गौरव एवं स्वदेशी अभिमान के साथ हो रहा है ..नवीन तकनीकी हमको कोई ला कर नहीं देने वाला, विदेशी देश हमे यदि देती है तो अपनी 20 वर्ष पुरानी तकनीकी जो उनके देश में अनुपयोगी, फैकने योग्य हो चुकी है . इसके उदाहरण है जैसे कीटनाशक, रसायनिक खाद निर्माण की तकनीकी स्वयं अमेरिका में बीस वर्ष पूर्व से जिन कीटनाशकों का उत्पादन एवं विक्रय बंद हो चुका है, एवं उनके कारखाने उनके यहाँ अनुपयोगी हो गए है . अमेरिका 142 विदेशी कंपनियों के इतने गहरे गहरे षड्यंत्र चल रहे है ,इन्हें समझना हम प्रारंभ करे अपनी आंखे खोले, कान खोले दिमाग खोले एवं इनसे लड़ने की तैयारी अपने जीवन में करे भारत स्वाभिमान इसी के लिए बनाया गया एक मंच है जो इन विदेशी कंपनियों की पूरे देश में पोल खोलता है एवं पूरे देश को इनसे लड़ने का सामर्थ्य उत्पन्न करता है , हमे इस बात का स्मरण रखना है की इतिहास में एक भूल हो गई थी जहांगीर नाम का एक राजा था उसने एक विदेशी कंपनी को अधिकार दे दिया था, इस देश में व्यापार करने का परिणाम यह हुआ की जिस कंपनी को जहांगीर ने बुलाया था उसी कंपनी ने जहांगीर को गद्दी से उतरवा दिया एवं वह कंपनी इस देश पर अधिकार कर लिया 06 लाख 32 सहस्त्र 781 क्रांतिकारियों ने अपने बलिदान से उन्हें भगाया था .
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
(राजीव जी से सम्बन्धित समस्त जानकारी नेट पर उपलब्ध है., नेट से तथा पुस्तकों से ही ली गई है एक विनम्र आग्रह कि इस विचारधारा को किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी विशेष से न जोड़ते हुए देश हित के दृष्टिकोण से विचार करें )
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