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बधाई हिंदी भाषा के इस शिखर को छूने के लिए
गर्वोन्नत मस्तक हो जाता है हर देशभक्त भारतीय का जब वह यह आनन्ददायक समाचार सुनताया पढता है. कि हमारी भाषा विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बन गयी है .सच में हिंदी का वैश्विक पटल पर बढ़ता महत्व बहुत ही सुखदहै,,अन्तराष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालयों में होने वाले शोध,अध्ययन ,कार्यशालाएं ,सेमिनार्स ,गोष्ठियों ,हमारे हिंदी प्रेमी विद्वानों के प्रयासों के कारण ही यह सुखद अवसर आया .
हमारे देश में भी हिंदी ब्लागिंग आदि के माध्यम से हिंदी का महत्वअंतर्जाल के माध्यम सेबुलंदियां छू रहा है.परन्तु परन्तु इतना सबकुछ होते हुए भी आप अग्रलिखित मेरे विचारों को पढ़कर बताएं मैं कहाँ गलत हूँऔर आज भी हमारी प्रिय हिंदी देशवासियों के ह्रदय की रानी नही बन पायी
थालीमें खाना उसी में छेद करना मुहावरा उन अधिसंख्यक देशवासियों पर लागू होताहै ,जो हिंदी में सोचते हैं, ,हिंदी सीख कर ही पलते बड़े होते हैं,हिंदी केमाध्यम से अपने दैनिक व्यवहार करते हैं,हिंदी गाने सुनते हैं,हिंदीफिल्में देखते हैं ,हिंदी समाचार सुनते हैं,टी वी के हिंदी कार्यक्रम हिंदीके देखते हैं,हिंदी बिछाते ओढ़ते और हिंदी में स्वप्न देखते हैं,लेकिनस्वयम को हिंदी भाषी कहलाने में अपमान मानते हैं,अपने बच्चों को हिंदीसिखाना नहीं चाहते,उन स्कूल्स में बच्चों को प्रवेश दिलाकर स्वयम को आधुनिकमानते हैं जहाँ हिंदी शब्द बोलने पर दंड मिलता है.बड़े गर्व से कहते हैहमारे बच्चों को हिंदी की गिनती नहीं आती,हमारे बच्चों को हिंदी वर्णमालायाद नहीं आदि आदि ………….
जब संस्कार ऐसे मिलेंगें घुट्टी में तो कैसे सीखे नई पीढी अपनी माँ कासम्मान करना ?हिंदी हर भारतवासी के लिए माँ के समान ही है, वही हिंदी जोहिंदी हर भारतीय के माथे की बिंदी होनी चाहिए,जो हिंदी में विश्व मेंप्रयोग की जाने वाली प्रमुख भाषाओं में एक है, हिंदी को प्रोत्साहनअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिल रहा हैतथा वहाँ पढाई भीजा रही है , परन्तुदुर्भाग्य से उस माँ का हर कदम कदम पर अपमान होता है.
>,हिंदीके प्रति कुलीन परिवारों में तो हीन भावना है ही ,निर्धन वर्ग भी अपनेसामर्थ्य के अनुसार अपने बच्चों को भूखा रह कर भी अंग्रेजी स्कूल में पढानेकी कामना रखता और यथासंभव पूरा करता है .स्कूल अंग्रेजी माध्यम का हो भलेही वो गली मौहल्लों में घर घर खुले हुए स्कूल हीहों.उनमें पढ़ाने वालीशिक्षिकाएं 1000 रुपए मासिक वेतन पर पढ़ा रही हो अप्रशिक्षित हों.बस बच्चाअंग्रेजी के टूटे फूटे शब्द बोल ले गलत या सही का तो न उनको पता न बच्चोंको .वो प्रसन्न हैं कि बच्चा अंग्रेजी सीख रहा है.
मध्यमवर्गीय परिवारों में भी ये रोग बहुत गहराई से पैठ बनाये हुए है. बसबच्चा अंग्रेजी कविता सुना दे ,जिसको रटने में उसका और स्वयम मातापिताका सम्पूर्ण समय बीत जाता हो , मातापिता का मस्तक गर्वोन्नत हो जाता है .बच्चों पर दोहरी मार को लेकर झींकना मंज़ूर है,स्कूल्स द्वारा लागूमनचाही फीस और अन्य व्यय को लेकर अपने बजट को बिगाड़ना पड़े परन्तु स्कूलका माध्यम अंग्रेजी ही हो. दूसरे शब्दों मेंयदि कहा जाय कि हिंदीमाध्यम के स्कूलों में पढ़ने वाले वो बच्चे हैं जिनके पास बिलकुल ही साधननहीं हैं तो अतिश्योक्ति नहीं ,( साधन होते हुए भी बच्चों को केवल अंगेजीमाध्यम का दास न बनाना अपवाद स्वरूप ही है.)
गृहणियांभी जो हिंदी का प्रयोग बचपन से अपने घरों में देखती सुनती हैं, गलत बोलेया सही हिंदी शब्दों के स्थान पर अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर ही स्वयमको स्मार्ट समझती हैं.एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ,दुकानदार,रिक्शे वाला केसामने भी अंग्रेजी के शब्द बोलने वाला ग्राहक वी आई पी होता है.(जबकिउसको स्वयम उन शब्दों का अर्थ नहीं पता )
औरों कोक्या कहा जाय हमारे नेता अंग्रेजी में भाषण देकर स्वयम को विद्वान् समझतेहैं,ये बात मैं दक्षिण भारतीय नेताओं की नहीं कर रही हूँ अपितु उत्तरभारतीय नेताओं की भी यही मनोवृत्ति है. युवा पीढी के रोल माडल कहलाने वालेफ़िल्मी अभिनेता अभिनेत्रियाँ जिन हिंदी फिल्मों सेप्रसिद्धि प्राप्त करस्टार बनते हैं,धनकुबेर बनते हैं (अपवाद स्वरूप श्री अमिताभ बच्चन जी तथा चंद अन्य अभिनेता ) ,किसी भी समारोह में अंग्रेजी में हीबोलेंगें.इन सबसे बढ़ कर प्रशासनिक अधिकारी जो कहलाते जनसेवक हैं लेकिनहिंदी में व्यवहार नहीं करते अंगरेजी जानते हुए भी हिंदी में बोलने वालेनेता,अभिनेता ,अधिकारी अपवाद स्वरूप ही हैं. हमारे पूर्व प्रधानमंत्री जननायक श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी (जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में सर्वप्रथम हिंदी में संबोधित कर हिंदी को उसका स्थान दिलाने का प्रयास किया ,तदोपरांत मोदी जी ने वहां उपस्थित भारतीयों को तथा अन्य विशेष सभाओं में हिंदी में उद्बोधन के माध्यम से इस क्रम को आगे बढाया )
मेरेविचार से आम आदमी की इस मानसिकता पर यदि विचार करें तो इसका कारण है हमारीगुलामी की मानसिकता जो हमारे मनोमस्तिष्क पर छायी है .लम्बे समय तक दासताकी जिन्दगी जीते हुए हमारी शिक्षा प्रणाली लार्ड मैकाले के सिद्धांत केआधार पर तैयार हुई .दुर्भाग्य से स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भी नीतिनिर्माताओं की आँखों पर दासता का ही पर्दा रहा और उसी शिक्षा प्रणाली कोजारी रखा गया. तद्पश्चात भी कठोर निर्णय शक्ति न होने और राजनीति केदुश्चक्र ने हिंदी को अपने ही देश में बेगाना बनाये रखा.
अंगरेजी के प्रति मोह का एक अन्य कारण है ,श्रेष्ठ पदों पर बैठे अधिकारीया ग्लेमर की दुनिया के वे लोग ,जिनको व्यक्ति टी वी, फिल्मों राजनीतिया अन्य क्षेत्रों में सफलता के शिखर पर पहुँचते देखता है और फिरअंग्रेजी रंग ढंग अपनाते देखता है,जिनके बच्चे पंचतारा जिन्दगी जीते हैं.स्वयम को और अपनी आने वाली पीढी को भी सफलता के शिखर पर देखने की कामना हरव्यक्ति का स्वप्न होता है अतः वह अनुसरण करते हुए अपने बच्चों का भविष्यसुरक्षित करना चाहता है. विदेश गमन की चाह भारतीयों का एक ऐसा मोहहै,जिसके कारण अंगरेजी उनके दिलो दिमाग पर छाई रहती है.और वो ये मान बैठताहै कि उनके बच्चे आगे की पढाई अच्छी तरह करके उच्च पद नहीं प्राप्त नहींकर सकेंगें.
अपनीभाषा को सीखना सरल होता है जिसके लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता ,परन्तु हमारी मानसिकता दोषपूर्ण हो जाने के कारण आज हमारे अधिकांश बच्चेरट कर आगे बढ़ते हैं,जिसमें उनका दोगुना समय बर्बाद होता है .
.अंग्रेजी एक विषय के रूप में पढना प्रवीणता प्राप्त करना कभी भी अनुचितनहीं अंगरेजी क्या अपितु विश्व की जितनी भाषाएं भी सीखी जा सकें सीखनीचाहिए,ज्ञान तो जितना बढाया जाय उतना ही उत्तम है,परन्तु अपनी उस भाषा कोहीन मानते हुए नहीं जिसके कारण हमारा अस्तित्व है.
भारतेंदुहरीश चन्द्र जी की इन पंक्तियों के साथ इस आलेख को विराम ,जिसमें अपनीभाषा के महत्व परसुन्दर शब्दों में प्रकाश डाला गया है
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।
उन्नति पूरी है तबहि, जब घर उन्नति होय।
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहूँ न ह्यौंहिं सोच।
लाख उपाय अनेक यों, भले करो किन कोय।।
इक भाषा इक जीव इक मति, सब घर के लोग।
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात।
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।।
तेहि सुनि पावैं लाभ सब, बात सुनै जो कोय।
यह गुन भाषा और मंह, कबहू नाहीं होय।।
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