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एक और एकलव्य (लघु कथा) कांटेस्ट

chandravilla
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आज रजत की जिन्दगी में वो स्वर्णिम पल आया था जिसका स्वप्न वह सदा  देखता था. भौतिक विज्ञान में उसकी रिसर्च को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली थी और  एक बड़े समारोह में उसको विशिष्ठ  प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किये जाने  की घोषणा की गयी थी . खुशी से पागल था वह . बधाई मिलने का क्रम टूट नहीं रहा था.फोन काल्स,मेल्स ,सन्देश और व्यक्तिगत रूप से भेंट करने वाले.

.पितृविहीन  रजत को उसकी  अनपढ़  माँ ने बर्तन चौका कर पढ़ाया था.  माँ का एक ही सपना था उसका रज्जू बहुत बड़ा आदमी बने .मेधावी रजत  भी अपने परिश्रम ,मेधा और माँ के परिश्रम के बल पर निरंतर सफलता के सोपान चढ़ रहा था.. अब उसका  सपना था रिसर्च के क्षेत्र में ही कुछ विशिष्ठ करना . दुर्भाग्य से  जीवन के इस सफ़र में रजत को अकेला छोड़ गयी माँ भी .

“तुम्हारे जैसे लोगों के बस की बात नहीं है रिसर्च करना,कहीं नौकरी खोज कर अपनी रोजी रोटी की चिंता करो “

.प्रोफ़ेसर की बात से रजत को दुःख तो बहुत हुआ. दृढ निश्चयी उस शिष्य का  मनोबल नहीं टूटा. उसका अहर्निश परिश्रम रंग लाया .उसको रिसर्च के लिए छात्रवृत्ति  भी मिली..और उसका शोधप्रबंध पूर्ण हुआ.

रिसर्च करना तुम जैसों का काम नहीं .” रजत से कहा जानता है ये वही सर हैं जिन्होंने तेरा मजाक उड़ाया था. रजत शान्ति से बोला ,”हाँ जानता हूँ पर उनका ये हतोत्साहित करना ही मुझको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा जब मैं निराश होता यही वाक्य मुझको आगे बढ़ने को प्रेरित करता .

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