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“एक नहीं दो दो मात्राएँ नर से बढ़कर नारी” सुनने में कुछ सुखद और विचित्र सा लगता है . हमारे देश के संदर्भ में तो ऐसा ही प्रतीत होता है,क्योंकि शक्ति स्वरूपा , नारी शक्ति ………हमारे देश के अधिकांश भागों में घर घर पूजी जाती है,जिसके दर्शन करने के लिए सभी दुर्गम बाधाओं को पार करते हुए भक्तजन ऊंचे पहाड़ों पर पहुँचते हैं,पैरों में छाले ,नंगे पैर, कड़ी धूप ,वर्षा ,और भयंकर शीत कोई भी तो राह नहीं रोक पाते भक्तों को , घर घर ,कन्या पूजन किया जाता है, माँ को प्रसन्न करने के लिए व्रत उपवास किये जाते हैं.नारी शक्ति की महानता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि राधा कृष्ण,लक्ष्मीपति विष्णु जी,उमापति महादेव,गौरी पुत्र ,अंजना सुत आदि नामों से पुकारा जाता है प्रभु को .यज्ञ में पत्नी की उपस्थिति अनिवार्य मानी गयी थी हमारे देश में अतः ,पत्नी की अनुपस्थिति में स्वर्ण प्रतिमा रखवानी पड़ी प्रभु राम को. इतना ही नहीं विवाह में स्वयम्वर के रूप में पति चुनने का अधिकार ,युद्ध में पति के साथ सशस्त्र युद्ध में भाग लेने के उदाहरण भी हमको इतिहास में मिलते हैं.(भले ही ये व्यवस्था कुलीन या राजपरिवारों में रही हो )लेकिन जन सामान्य के भी नकारात्मक उल्लेख नहीं मिलते इस संदर्भ में .
व्यवहार में भी विदुषी नारियों को शास्त्रार्थ का अधिकार दिया गया, पुरुषों को विदुषी नारियों ने पराजय स्वीकार करने को विवश कर दिया . कालिदास को महाकवि बनने की प्रेरणा देने वाली उनकी पत्नी विद्योत्मा ही थी तो रत्नावली की प्रेरणा से तुलसीदास रामचरितमानस रच सके.
समय तो कभी स्थिर नहीं रहता , अतः हमारी अपनी दुर्बलताओं के कारण हमारे देश पर मुस्लिम आक्रमणकारियों का अधिकार हुआ और हमको वो दुर्दिन देखने पड़े,जब सुन्दर स्त्रियों को बलात या विवशतावश उन शासकों या उनके प्रमुख सिपहसालारों के साथ विवाह बंधन में बंधना पड़ा. स्वयम को शक्तिशाली मानने वाले राजाओं को अपनी बेटियां आततायियों को सौपनी पड़ी, उन क्रूर शासकों की अपमानजनक मांगों को पूर्ण करना पडा अपनी बहिन,बेटी या पत्नी के संदर्भ में . वीर क्षत्राणियों को अपनी आनबान शान की रक्षार्थ जौहर करते हुए जलती चिता में कूदना पड़ा.
इतिहास साक्षी है कि बाल विवाह,बेमेल विवाह पर्दा प्रथा नारी शिक्षा पर प्रतिबन्ध आदि समाज के लिए कलंक स्वरूप कुप्रथाओं को निरंतर बढावा मिला. अभी एक दासता हमारे गौरवमय अतीत को कलंकित करने हेतु पर्याप्त नहीं रही और हमारा देश ब्रिटिश आधीनता को भुगतने को विवश हुआ. हर क्षेत्र में शोषित रहते हुए भी अंग्रेजी शासन में कुछ महान समाज सुधारकों स्वामी दयानन्द ,स्वामी श्रद्धानन्द,ईश्वरचन्द्र विद्यासागर,राजा राम मोहन राय ,स्वामी विवेकानन्द,महात्मागांधी,भगिनी निवेदिता,सरोजिनी नायडू आदि के प्रयासों से इन कुप्रथाओं पर कुछ नियंत्रण लगा .
स्वाधीनता संग्राम में भी महारानी लक्ष्मी बाई,बेगम हज़रत महल, मैडम कामा ,विजय लक्ष्मी पंडित,दुर्गा भाभी ,एनी विसेंट ……….सरीखी विदुषी नारियों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया .नारी कहीं भी पीछे नहीं ये प्रमाणित किया (इतिहास के पन्नों में भले ही अधिक नामों की सूची अपना योगदान देने वाली महिलाओं की न हो परन्तु जिन्होंने अपना सबकुछ लुटा कर भी देश को मुक्त करने में योगदान दिया,उनको भुलाना कृतघ्नता ही होगी.)
स्वाधीनता प्राप्ति के उपरान्त भी यद्यपि संविधान ने सबको लिंग भेद के बिना समानाधिकार दिए गये हैं,अनुच्छेद 14,15,16 के अनुसार सबको समान अवसर प्रदान किये गये हैं ,बालिकाओं की शिक्षा की समुचित व्यवस्था है,कार्यरत महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश की तथा शिशु देखभाल के लिए अवकाश की व्यवस्था है, गर्भ के समय लिंग परीक्षण दंडनीय अपराध है. महिलाओं के लिए पंचायतों में स्थान आरक्षित हैं.महिला थानों की व्यवस्था है,स्त्री –पुरुष को नौकरी में समान अधिकार हैं,कुछ तकनीकी संस्थानों में तो लड़कियों के लिए स्थान आरक्षित हैं.
1990 में महिलाओं के लिए विशेष आयोग के गठन की व्यवस्था के लिए अधिनियम पारित किया गया है.1992 -1993 में नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी के महत्व को समझते हुए संविधान में 73वां 74 वां संशोधन कर पंचायतों और स्थानीय संस्थाओं में स्थान आरक्षित कर दिए गये हैं.महिलाओं के सशक्तिकरण को प्रधानता देते हुए 2001 को महिला वर्ष घोषित करते हुए उनके कल्याण की विशिष्ठ व्यवस्थाएं की गयी हैं.
राष्ट्राध्यक्ष,प्रधानमन्त्री . कांग्रेस अध्यक्षा,मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष,प्रमुख न्यायाधीश,सैन्यधिकारी,सर्वोच्च पुलिस अधिकारी(के रूप में वर्तमान या पूर्व में ),हिमालय की चोटी पर विजय प्राप्त कर भारतीय ध्वज फेहराने वाली,ऑटो रिक्शा से लेकर वायुयान तक उड़ाने वाली,घर,खेत खलिहानों ,में,,प्रबंधन ,चिकित्सा,तकनीक,अन्तरिक्ष आदि क्षेत्रों में अग्रणी तथा , मेहनत -मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करने वाली अर्थात सभी क्षेत्रों में भारतीय नारी अग्रणी है. भारतीय महिला प्रोफेशनल्स भी भारत तथा भारत से बाहर बहुत बड़ी संख्या में हैं .
कितना गौरवपूर्ण है नारी के सशक्त होने के सम्बन्ध में हमारे आंकडें और इतिहास ! परन्तु दूसरा चित्र उतना ही भयावह है ,और निष्पक्ष विचार करने हेतु दोनों पहलुओं पर विचार करना जरुरी है .
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आज भी समस्त सरकारी प्रतिबंधों के पश्चात भी लिंग परीक्षण होते हैं और लड़कियों के जन्म ग्रहण करने से पूर्व ही उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी जाती है.
ग्रामीण व सुदूर स्थानों पर हमारी बालिकाएं स्कूल जाती ही नहीं और यदि जाती भी हैं तो स्वयम उनके और उनके मातापिता के शिक्षा का महत्त्व न समझ पाने के कारण प्राथमिक शिक्षा से पूर्व हो पढ़ाई छोड़ देती हैं, बाल मजदूरी करने को विवश हैं वो बच्चियां ,उनका बचपन परिवार में आर्थिक योगदान देने पर भी उपेक्षित ही रहता है,उनको बचपन से ही परिवार का पेट पालने के लिए हाड़तोड़ परिश्रम करना पड़ता है और मिलते हैं आधे चौथाई रुपए और यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है.
यद्यपि 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं का साक्षरता अनुपात बढ़ा है,परन्तु नारियों का जीवन आज भी पूर्णतया असुरक्षित है, बस,ट्रेन,हवाई यात्रा,कार्यस्थल,यहाँ तक की परिवारों में भी .लड़कियों को छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता है. बलात्कार और घरेलू हिंसा या अन्य शोषण के कारण उनका जीवन नरक बन रहा है..
कुपोषण,दहेज़ ,स्वास्थय,की समस्याएँ,घरेलू हिंसा,कार्यस्थलों पर शारीरिक,मानसिक उत्पीडन,आर्थिक परतंत्रता ,वेश्यावृत्ति बाल विवाह (देश के कुछ भागों),आदि समस्याओं के कारण हमारे नारी सशक्तिकरण के दावों पर प्रश्नचिंह लग जाता है.आज इतनी प्रगति के पश्चात भी नारी दोयम दर्जे की नागरिक ही बनी है.यदि किसी कार्यालय में बॉस नारी है तो योग्य होने पर भी उसको स्वीकारने में पुरुष अधीनस्थों को कष्ट होता है.
ऑनर किलिंग के नाम पर स्वेच्छा से विवाह कर लेने या मात्र प्रेम कर लेने पर भी फांसी पर लटका दिया जाता है या मानवता को भी अन्दर तक हिला देने वाली सजायें दी जाती हैं. प्राय ऐसी घटनाएँ सुनने को मिलती हैं.
प्रश्न उत्पन्न होता है कि नारी शिक्षा में प्रगति,सरकारी प्रयासों, पूर्व की तुलना में शिक्षित परिवारों में परिवर्तित सोच के बाद भी वांछित परिवर्तन महिलाओं की स्थिति में क्यों नहीं हो पा रहा है. नारी उत्पीडन की घटनाएँ होने पर एक ही स्वर सुनाई देता है,अकेली क्यों गयी थी,रात को क्यों घूम रही थी .इसको नारी का सशक्त होना कैसे माना जा सकता है.
व्यापक दृष्टि से यदि विचार किया जाय तो एक ही मूलभूत तथ्य पर आकर विषय ठहर जाता है और वो है सोच.आज भी परिवार में लडकी का जन्म उस उत्साह से स्वीकार नहीं किया जाता,जितना पुत्र जन्म. कितना ही पढ़ा-लिखा परिवार हो पुत्र दूसरा उत्पन्न हो तो चलेगा परन्तु पुत्री के जन्म के समय विषाद की रेखाएं चेहरे पर अवश्य दिखेंगीं.(अपवाद सर्वत्र हैं),दहेज़ के दानव से मुक्ति कठोर से कठोर क़ानून बनने पर भी नहीं हुई है.
नारी मुक्ति आन्दोलन मेरे विचार से कोई हल नहीं हैं, . महिला दिवस मना लेना महानगरों में रैली निकाल लेना ,कोई भाषण आदि आयोजित कर लेना,पत्रक वितरित कर देना मात्र दिखावा है.सरकार के प्रयास तभी रंग ला सकते हैं जब क़ानून कागजी न रहें, उनके क्रियान्वयन में कोई ढिलाई न हो. महानगरीय सभ्यता में परिवारों में बालिकाओं की उच्च शिक्षा,तकनीकी शिक्षा और प्रोफेशनल्स हो जाने के कारण परिवारों में कुछ छूट अवश्य मिली है.परन्तु वो आम परिवारों में नहीं है.
नारी का महत्व स्वयं नारी समझे और जीवन के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने. ., नारी जागृति की सार्थकता तभी है जब गाँव गाँव तक ये सन्देश यथार्थ में पहुंचे कि समाज का ,देश का उत्थान ,विकास तभी संभव है जब आधी आबादी भी तन -मन- धन से देश के विकास में अपना सक्रिय सम्पूर्ण योगदान दे सके शिक्षित नारी ही सुखी,स्वस्थ,नियोजित और शिक्षित परिवार का महत्व समझ सकती है,तथा देश की अधिकांश समस्याओं के समाधान में अपना योगदान दे सकती है सभी का साक्षर नहीं सुशिक्षित होना जरुरी है,.. . और इसके लिए निरंतर प्रयासरत रहना जरुरी है. .परिवार में भी उसके योगदान को सम्मान देना होगा.
यद्यपि देश में बहुत से संगठन ,स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हैं,परन्तु केवल विदेशों से धन एकत्र करना प्राय इन संस्थाओं का प्रमुख कार्य होता है,महिलाओं का उत्थान बड़े बड़े होटलों,वातानूकूलित कक्षों में(एयर कंडिशंड कक्षों) नहीं होता .उनके मध्य जाकर उनके साथ रहकर उनकी समस्याओं को समझ कर,उनको किताबी शिक्षा के साथ व्यवहारिक शिक्षा प्रदान कर ही जन सेवा हो सकती है. राष्ट्रीय सेवा योजना के अंतर्गत लगाए गये -2-3 दिन के शिविरों से नारी जाति को सशक्त नहीं बनाया जा सकता.जिन मान्यताओं की जड़ें इतनी गहन हैं उनके समूल विनाश के लिए सभी को प्रयासरत होना होगा.
औपचारिक शिक्षा कार्यक्रम का एक आवश्यक अंग नारी जागृति व उत्थान का सन्देश व्यवहारिक रूप में जन जन तक पहुँचाने के लिए योजनाबद्ध कार्यक्रम तैयार कर इस कार्यक्रम को मूर्तरूप प्रदान किया जा सकता है.अंतरात्मा की आवाज़ को सुन कर ही कोई कार्य व्यक्ति सफलता पूर्वक करता है,अन्यथा तो बचाव के ढेरों रास्ते निकाल लिए जाते हैं.सकारात्मक उपायों से,संस्कारों के माध्यम से ही सोच में परिवर्तन आ सकता है.
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