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ऐसे पति करवाचौथ की पूजा के अधिकारी !

chandravilla
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अचल रहे अहिवात तुम्हारा
जब लगि गंग यमुन जलधारा।’ श्री रामचरित्र मानस की  इन सुन्दर पंक्तियों के साथ सभीको सुखद दाम्पत्य जीवन के लिए मंगलकामनाएं जिनमें माता कौशल्या सीता जी को आशीर्वाद देती हैं. और विवाह के लिए प्रतीक्षारत सभी के मनोरथ पूर्ण शीघ्र पूर्ण की कामना .

किसी विवाहित महिला को ये कहा जाना शायद  किसी गाली से कम नहीं लगता कि इसके पति ने इसको छोड़ दिया है.ये एक आम भाषा का शब्द है,और दुर्भाग्य से वैवाहिक सम्बन्धों में दरार आने का चाहे जो भी कारण रहा हो ,तिरछी नज़रें प्राय स्त्री की ओर ही उठती हैं,मानों उससे  ही कोई बहुत बड़ा अक्षम्य अपराध हुआ परिणाम स्वरूप उसका परित्याग किया गया है.क्या हो ऐसी ही परित्यक्ता कही जाने वाली पत्नी अपने उन्ही पति महोद्य के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हो.

अभी पिछले दिनों संयोग से ऐसी ही दो महिलाओं से सम्पर्क हुआ जिनके माथे पर यही लेबल लगा था.दोनों में से एक का कसूर था उसका रूप रंग सामान्य होना ,और दूसरी का संतान न होना.आश्चर्य की बात कि सामान्य रूप रंग वाली महिला को उनके तथाकथित पतिदेव  और  उनके परिजन ही पसंद कर अपने घर सात फेरों के बंधन में बाँध कर लेकर आये थे,तथा वो एक बेटी के पिता भी  हैं. दूसरी महिला का निस्संतान रह जाने का कारण भी उनकी कोई शारीरिक विकृति नहीं अपितु कोई भयंकर एक्सीडेंट था जो पति के साथ जाते समय पति की लापरवाही वश हुआ था.
यद्यपि आर्थिक रूप से दोनों ही महिलाएं अब आत्मनिर्भर हैं,पहली किसी विद्यालय में शिक्षिका हैं , और दूसरी अपना बुटीक चलाती हैं,परन्तु दोनों ने  पुनर्विवाह नहीं किया ,जबकि दोनों के पति विवाहित जीवन व्यतीत कर रहे हैं.निस्संतान महिला के पति ने तो न्यायिक प्रक्रिया  से (जो स्वयं अधिवक्ता हैं) ने वैधानिक विवाह कर लिया है,जबकि दूसरी स्त्री के पति समाज की परवाह न  करते हुए किसी सुन्दरी के साथ रह रहे हैं.लोक लाज तो बहुत दूर की बात है उनको तो उस बेटी के भविष्य की भी चिंता नहीं जो अपनी माँ के साथ रहती है .उससे भी विडंबना कि जब इनमें से एक महिला के भूतपूर्व पति तो एक ही शहर में रहते हुए उनके हाल पूछने की औपचारिकता भी पूर्ण करने नहीं गए जब वो जिंदगी और मौत की लड़ाई अकेली लड़ रही थीं.
उपरोक्त विवरण देने का संदर्भ है कि ये दोनों  महिलाएं करवाचौथ का व्रत अपने उन्ही पतिदेव के लिए रखती हैं.एक सुहागिन पतिव्रता के रूप में इनका  अपने पति के लिए व्रत रखना और पूजा करना कुछ अटपटा सा  लगा,पति भी ऐसे !जो भर्तार नहीं पत्नी के सुख और जीवन  हर्तार हों .
पर्व एवं त्यौहार सम्पूर्ण विश्व में अपनी अपनी परम्पराओं ,सामजिक या धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप मनाये जाते हैं.हमारी विलक्षण भारतभूमि में तो पर्व और उत्सवों की धूम है.त्यौहार मनाने का उद्देश्य सभी चिंताओं से मुक्त हो कर हंसी खुशी जीवन व्यतीत करना तो है ही,साथ ही सामाजिकता को प्रोत्साहन देने व अपनी भावनाएं व्यक्त करने का भी एक साधन है.केवल मात्र हिन्दू संस्कृति ही ऐसी संस्कृति है जहाँ त्यौहारों पर अपनी नहीं अपितु परिवार की मंगल कामना करते हैं.रक्षाबंधन,दशहरा व भाईदूज पर जहाँ बहिनों द्वारा भाई के मंगल की कामना की जाती है,विवाह के पश्चात करवा चौथ ,तीज तथा कुछ अन्य पर्वों पर पति की कुशलता व दीर्घ आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है, और व्रत रखा जाता है, कुछ स्थानों पर अविवाहित लड़कियां भी अपने मंगेतर या भावी पति की कामना से ये व्रत करती हैं..और संकट चतुर्थी , अहोई अष्टमी तथा जीवितपुत्रिका आदि पर्वों पर माँ अपनी संतान के लिए.पूजा व व्रत आदि करती हैं..

व्रत रखना और मंगलकामना करना निश्चित रूप से अपने मन की भावना है ,परन्तु ऐसे पुरुषों के लिए भूखा रहना किस प्रकार उचित कहा जा सकता है जिनके लिए पत्नी के प्रति न भावना,न प्रेम, न अपनत्व. पत्नी पति द्वारा प्रताडित रहे .छली जाय , पति दूसरी स्त्री के साथ रह रहा हो और पत्नी उसके लिए कष्ट सह रही हो.क्या ऐसे पति इस सम्मान,त्याग ,समर्पण के अधिकारी हैं?

फिल्मों के या दूरदर्शन धारावाहिकों के प्रभाव से अब पति भी पत्नी के साथ करवाचौथ पर व्रत रखने लगे हैं. और उपहार आदि दिलाने की व्यवस्था करते हैं. अपनी पत्नी से किसी भी कारण प्रदेश स्थित पतियों को इन्टरनेट के माध्यम से त्यौहार मनाने तथा विभिन्न साईट्स वेबकेम के माध्यम से परस्पर अपनी भावनाएं व्यक्त करने का सुअवसर प्रदान करती हैं.

अंत में  मेरा अनुरोध ,विनम्र आग्रह पुरुषवर्ग से (जो ऐसा नहीं करते ) उन भाईयों से,उन पतियों से और उन पुत्रों से जिनके लिए मंगल कामनाएं ,व्रत उपवास नारी द्वारा किये जाते हैं.,क्या उनका दायित्व नहीं कि वें भी नारी जगत के प्रति सम्पूर्ण दायित्व का निर्वाह करते हुए उनको वो मानसम्मान ,सुख. खुशी प्रदान करें जिनकी वो अधिकारी हैं.और वही व्यवहार करें जिसकी अपेक्षा वो उनसे अपने लिए करते हैं. अपनी उन बहिनों से भी जो पति के लिए व्रत तो रखती हैं परन्तु पति का अपमान करने में या अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार से चूकती नहीं.

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